SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 826
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्त्रिंशःस्तम्भः। ७१९ तद्यथा॥ अनादि नित्य शुद्धपर्यायार्थिक-जैसें पुद्गलपर्याय मेरुप्रमुख प्रवाहसें अनादि, और नित्य है. असंख्याते कालमें अन्योन्य पुद्गलसंक्रम हुए भी, संस्थान वोही है, ऐसेंही रत्नप्रभादिक पृथिवीपर्याय जानने. १॥ सादि नित्य शुद्धपर्यायार्थिक-जैसे सिद्ध के पर्यायकी आदि है. क्योंकि, सर्व कर्म क्षय हुए, तब सिद्धपर्याय उत्पन्न हुआ, तिससे आदि हुइ; परंतु तिसका नाश अंत नहीं है, इसवास्ते नित्य है. एतावता सिद्धपर्याय सादिनित्य सिद्ध हुआ.।२। __सत्ताकी गौणतासें, उत्पादव्ययग्राहक अनित्य शुद्धपर्यायार्थिकजैसे समयसमयमें पर्याय विनाशी है. यहां विनाशी कहनेसें विनाशका प्रतिपक्षी उत्पाद भी, आगया; परंतु ध्रुवताको गौणकरके दिखाइ नही.॥३॥ सत्तासापेक्ष नित्यअशुद्धपर्यायार्थिक-जैसें एकसमयमें, पर्याय, उत्पाद व्यय ध्रुव तीनोंकरके रुद्ध है, ऐसा कहना. परंतु पर्यायका शुद्ध रूप तो, तिसकोही कहिये, जो सत्ता न दिखलानी. परंतु यहां तो, मूलसत्ता भी दिखाइ, इसवास्ते अशुद्ध भेद हुआ. । ४। - कर्मोपाधिनिरपेक्ष नित्य शुद्धपर्यायार्थिक-जैसें संसारीजीवके पर्याय, सिद्धके जीवसदृश है. यद्यपि कर्मोपाधि है, तथापि तिसकी वि. वक्षा न करिये; और ज्ञानदर्शनचारित्रादिक शुद्धपर्यायकीही विवक्षा करिये, तबही पूर्वोक्त कहना बनसकता है. । ५। कर्मोपाधिसापेक्ष अनित्य अशुद्धपर्यायार्थिक-जैसें संसारवासी जीवोंको जन्ममरणका व्याधि है. यहां जन्मादिक जीवके जे पयार्य कर्मसंयोगसें है, वे अनित्य और अशुद्ध है, तिसवास्तेही जन्मादिपर्यायके नाश करनेके वास्ते, मोक्षार्थी जीव, प्रवृत्तमान होता है.।६। येह पर्यायार्थिकके षट् (६) भेद कथन किये.॥ अथ इन पूर्वोक्त दोनों नयोंके स्थानप्रधान कहते हैं: द्रव्यार्थिक जो नय है, सो, नित्यही स्थानको कहता है; द्रव्यको नित्य, और सकल कालमें होनेसें. पर्यायार्थिक जो नय है,, सो, अनित्यही स्थानको कहता है, प्रायः पर्यायोंको अनित्य होनेसें. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy