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षट्त्रिंशस्तम्भः।
৩৫৩ उत्पादव्ययकी गौणतासें, और सत्ताकी मुख्यतासे, शुद्धद्रव्यार्थिक जैसे द्रव्य नित्य है, यहां तीनोंही कालमें अविचलितरूपसत्ताका मुख्यपणे ग्रहण करनेसें, यह भाव संभव होता है. क्योंकि, यद्यपि पर्याय, प्रतिक्षण परिणामी है, तो भी, जीवपुद्गलादिकद्रव्यसत्ता कदापि चलती नही है. इति उत्पादव्ययगौणत्वे सत्ताग्राहकः शुद्धद्रव्यार्थिकः।६।
भेदकल्पनानिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिक-जैसें निजगुणपर्यायस्वभावसे, द्रव्य, अभिन्न है. । ७।
कर्मोपाधिसापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिक-जैसे क्रोधादिकर्मभावमय आत्मा, जिस समय जो द्रव्य जिस भावे परिणमे, तिस समय सो द्रव्य तन्मय जानना; यथा लोहपिंड अग्निपणे परिणत हुआ तिस कालमें अग्निरूप जानना, ऐसेंही क्रोधमोहादि कर्मोदयकेसमय क्रोधादिभाव परिणत आत्मा क्रोधादिरूप जानना. इसी वास्ते आत्माके आठ भेद सिद्धांतमें प्रसिद्ध है. इति । ८।
उत्पादव्ययसापेक्ष सत्ताग्राहक अशुद्धद्रव्यार्थिक-जैसें एकसमयमें द्रव्य को उत्पादव्ययध्रुवयुक्त कहना, यथा जो कटकादिका उत्पादसमय, सोही केयूरादिका विनाशसमय, और कनकसत्ता तो, अवर्जनीयही है. इति।९।
भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिक-जैसें ज्ञानदर्शनादिक शुद्ध गुण आत्माके हैं. यहां षष्ठी विभक्ति, भेद कथन करती है. ' भिक्षोः पात्रमितिवत् ' भिक्षुसाधुका पात्र; यहां साधु, और पात्रका भेद है. इसीतरें आत्मा, और गुणका भेद षष्ठी विभक्ति कहती है; और गुणगुणीका भेद है नही, तो भी, भेदकल्पनाकी अपेक्षासें अशुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें ऐसें कथन करनेमें आता है. इति । १०।
येह द्रव्यार्थिकके दश भेद हुए. ॥
अथ पर्यायार्थिकनयके भेद लिखते हैं:-पर्यायनाम, जो उत्पत्ति, और विनाशको प्राप्त होवे. यदुक्तम्॥
अनादिनिधने द्रव्ये स्वपर्यायाः प्रतिक्षणम् ॥ उन्मजंति निमजति जलकल्लोलवज्जले ॥१॥
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