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तत्त्वनिर्णयप्रासादश्रीवादिदेवसूरिकृत प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकारं ।।
इस सूत्रके 'स्वदेहपरिमाणः' इस पदकी और 'प्रतिक्षेत्रं भिन्नः' इस पदकी टीकाकी भाषामें व्याख्या लिखते हैं। खदेहपरिमाण, इसकरके, आत्माका नैयायिकादि परिकल्पित सर्वगतपणा, निषेध करते हैं. आत्माको सर्वगत मानिये, तब तो, जीवतत्त्वके प्रभेद, जे प्रत्यक्ष दिखलाइ देते हैं, उनकी प्रसिद्धि न होनेका प्रसंग आवेगा; सर्वगत एकही आत्माविषे नानात्मकार्योंकी समाप्ति होनेसें. एककालमें नाना मनोका संयोग जो है, सो नानात्मकार्य है. सो नानात्मकार्य एक आत्मामें भी होसकता है. आकाशमें नानाघटादिसंयोगवत्. इसकरके युगपत्, नानाशरीर इंद्रियोंका संयोग कथन किया. __पूर्वपक्षः-युगपत् नानाशरीरोंविषे, आत्मसमवायिसुखदुःखादिकोंकी उपपत्ति नहीं होवेगी, विरोध होनेसें.
उत्तरपक्षः-यह तुमारा कहना ठीक नहीं है. क्योंकि, युगपत् नाना भेरीआदिकोंविषे, आकाशसमवायि विततादिशब्दोंकी अनुपपत्ति होनेके प्रसंगसें; पूर्वोक्त विरोधको अविशेष होनेसें.
पूर्वपक्षः-तथाविध शब्दोंके कारणभेद होनेसें, विततादि नानाशब्दोंकी अनुपपत्ति नही है.
उत्तरपक्षः-सुखादिकारणभेदसें, उस सुखादिकी अनुपपत्ति भी, एक आत्माविषे न होनी चाहिये, विशेषके अभाव होनेसें. पूर्वपक्षः-विरुद्धधर्मके अध्याससें, आत्माका नानात्व है. उत्तरपक्षः-तिस विरुद्धधर्मके अध्याससेंही, आकाशका भी नानात्व होवे.
पूर्वपक्षः-उपचारसे आकाशके प्रदेशोंका भेद माननेसें पूर्वोक्त दोष नहीं है.
उत्तरपक्षः-प्रदेशभेद उपचारसेंही, आत्माविषे भी, दोष नही है. और जन्ममरणादि प्रतिनियम भी सर्वगत आत्मवादीयोंके मतमें आत्मबहुत्वको नही साधेगा; एक आत्मामें भी, जन्ममरणादिकी उपपत्ति होनेसें. घटाकाशादिके उत्पत्ति विनाशादिवत्. नहीं घटाकाशकी
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