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________________ ६७२ तत्त्वनिर्णयप्रासाद- इसका उत्तरः-सातों पदार्थ स्वखरूपकरके तथा रूपवाले है, और परस्वरूपकरके अतथारूप हैं. जेकर ऐसें न माने, तब तो, ब्रह्म स्वस्वरूपकरके तथारूप है, सो परमायारूपकरके जेकर अतथारूप न माने, तब तो, ब्रह्म मायारूपकरके भी तथारूप सिद्ध हुआ; तब तो, वेदांतकी जडही सड गई. परंतु बिचारे शंकरस्वामीको ऐसा स्वमतका नाश होना कहांसे दीख पडे ? अतत्त्ववित् होनेसें. इसवास्ते जैनीयोंका माननाही ठीक है. इसीवास्ते संशय ज्ञानकीतरें अप्रमाणिक ज्ञान भी, नही होता है. पुनःशंकरस्वामी लिखते हैं, 'निरंकुश अनेकांतपणे सर्व वस्तुके माननेसें जो निश्चय करना है, सो भी वस्तुसे वाहिर न होनेसें अनिर्धारितरूपही होजावेगा. ऐसेंही निर्धारण करनेवाला, और निर्धारण करनेका फल भी होजावेगा; पक्षमें अस्ति, और पक्षमें नास्ति होजावेगा. जब ऐसें हुआ तब कैसे प्रमाणभूत वो तीर्थंकर अनिर्धारित प्रमाण प्रमेय प्रमाता प्रमितिविषय उपदेशक होसकता है? और कैसें तिस तीर्थंकरके अभिप्रायानुसारि पुरुषके कहे अनिश्चितरूप अर्थमें प्रवर्त्तमान होवे? क्योंकि, ऐकांतिक फलके निश्चित होनेसें तिसके साधन अनुष्ठानोंमें सर्वलोक अनाकुल प्रवर्त्तते हैं, अन्यथा नही. इसवास्ते अनिश्चितार्थशास्त्रका कहना उन्मत्तके वचनकीतरें उपादेय नही. - इसका उत्तरः-हमने जो निश्चय किया है, सो, अनिर्धारितरूप नही है. क्योंकि, हमने (जैनीयोंने) जो वस्तु माना है, सो, स्वस्वरूपकरके सत् हे, और परस्वरूपकरके असत् है; और यह जो हमने निश्चय किया है, सो निश्चय भी, अपने स्वरूपकरके निश्चित है, और परस्वरूपकरके नही है; तथा निर्धारण करनेवाला, और निर्धारणका फल भी, अपने स्वरूपपक्षमें अस्तिरूपही है, और परस्वरूपकरके नास्तिरूपही है. जैसे ब्रह्म, स्वस्वरूपकरके अस्तिरूप है, और परस्वरूपकरके नास्तिरूप है; जेकर ऐसा न माने, तब तो, ब्रह्मको स्वस्वरूप परस्वरूपदोनोंही करके अस्तिरूपही होनेसें, सत् असत् ज्ञान अज्ञानादि सर्व एकरूपही होजावेंगे, तब तो, ब्रह्मके स्वरूपकाही नाश होजावेगा. इसवास्ते ऊपर लिखेमूजब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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