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तत्त्वनिर्णयप्रासादइन पूर्वोक्त लेखोंसें माधवरचित शंकरविजयका जो यह लेख है.।
आसेतुरातुसाद्रिश्च बौद्वानां वृद्धबालकं ।
न हंति यः स हंतव्यो धृत्यानित्यवदन्नृपाः॥ भावार्थ:-सेतुबंधरामश्वरसें लेकर, हिमालयतक, बौद्धोंके वृद्धसें लेकर बालकपर्यंतको, जो न हणे, (न मारे) उसको मार देना; ऐसें अपने नोकरोंप्रति राजे लोक कथन करते हुए. सो मिथ्या सिद्ध होता है. __ और माधवने जहां बौद्ध लिखा है, वहां भी, आनंदगिरीने जैन लिखा है. माधवकृत विजयके सर्ग ७ के पृष्ट ११-१२ में, और आनंदगिरिकृत विजयके पृष्ट २३६ में देखो. क्या जाने, आनंदगिरिको जैनीयोंने बहुत सताया होगा, इसवास्ते, बौद्धोंकी जगे भी, जैनमतीही लिख दिये !!! परंतु हमारी समझमूजब तो, आनंदगिरिको जैन और बौद्धमतंके पृथक् २ जाननेकी भी, बुद्धि नहीं थी. और शंकरने, जैनमतोपरि कुमारिलवत्, जुलम गुजारा, ऐसा तो, दोनोंही विजयग्रंथों में नहीं लिखा है.
ऐसे पूर्वोक्त स्वरूपवाले शंकरखामीने, वेदांतमतके व्याससूत्रोपरि, भाष्य रचा है. उसमें व्यासजीके कथनानुसार, जैनमतका खंडन, लिखा है. सो खंडन खंडनपूर्वक, आगेके स्तंभमें लिखेंगे. । इत्यलम् ।
इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादे शंकरस्वामिस्वरूपवर्णनोनामपंचत्रिंशःस्तम्भः॥३५॥
॥ अथ पत्रिंशस्तम्भारम्भः॥ पंचत्रिंश (३५) स्तम्भमें शंकरस्वामीका स्वरूप कथन किया, अथ इस छत्तीस (३६) मे स्तम्भमें शंकरस्वामीने जैसे जैनमतकी सप्तभंगीका खंडन किया है सो, और उसके खंडनका खंडन लिखते हैं. तहां प्रथम जैनमतवाले जैसा सप्तभंगीका स्वरूप मानते हैं, तैसा भाषामें लिखते हैं, जिससे वाचकवर्गको मालुम हो जायगा कि, शंकरस्वामीने,
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