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तत्त्वनिर्णयप्रासादसमझाया कि, तुम रोगकी चिकित्सा करो. तब शंकरस्वामीने कहा कि, रोग, जन्मांतरके पापोंसें होता है, सो भोगनेसेंही नाश होता है, इसवास्ते भोगनेसेंही नाश करने योग्य है. जेकर न भोगा जावे तो, ज. न्मांतरमें भोगना पडता है, यह शास्त्रका कहना है. शिष्योंके अतिआग्रहसे शंकरस्वामीने चिकित्सा करानी मान्य की, तब शिष्योंने हजारों वैद्योंसें चिकित्सा करवाइ, परंतु भगंदर तो बढ गया. तब सर्व वैद्य, अपने २ घरोंको चले गए. तब शंकरस्वामीने महादेवका स्मरण किया, तब अश्विनीकुमार वैद्यको ब्राह्मणके वेषमें महादेवने भेजे, अश्विनीकु. मार भी हाथमें पुस्तक लेके शंकरस्वामीके पास आके बैठ गये, और कहने लगे कि, भो यतिवर ! यह तेरा रोग, दूर नहीं हो सकता है. क्योंकि, अभिचारकरके यह उत्पन्न हुआ है, ऐसा कहके वे निजस्थानमें जाते रहे. तब शंकरस्वामीक शिष्य पद्मपादने क्रोधमें आके ऐसा मंत्र जपा, जिससे अभिनवगुप्त मर गया. शंकरस्वामी पीछे काश्मीरमें गये, वहां सरस्वतिका मंदिर चतुर्दारवाला, जिसके मध्यमें सर्वज्ञपीठ नामा चौंतरा है, तिसपर जो चढे, सो सजनोंमें सर्वज्ञ होता है, और सोही उस मंदिरमें प्रवेश करनेमें समर्थ होता है, अन्य नही. शंकरस्वामी उस मंदिरके दक्षिण दरवाजेको खोलनेवास्ते वहां आये, और दक्षिणका दरवाजा खोला, अनेक वादीयोंके प्रश्नोंके उत्तर दीए, जब अभ्यंतर (अंदर) जानेको उत्सुक हुए, तब सरस्वतिने कहा कि, केवल इस पीठिका ऊपर चढनेवालाही सर्वज्ञ नहीं होता है, परंतु चढनेवालेमें शुद्धता भी होनी चाहिये. सो शुद्धता तुमारेमें है, वा नहीं ? क्योंकि, यतिधर्ममें निष्ठ ऐसे तुमने सम्यक्प्रकारसे स्त्री भोगी है. और कामकलारहस्यप्रवीणताके तुम पात्र हुए हो. इसवास्ते ऐसे पदपर चढनेकी तुमारेमें किसी प्रकारसें भी, योग्यता नहीं है.
यह सुनकर शंकरस्वामीने कहा, हे अंबे ! जो तूने कहा कि, अंगना (स्त्री) भोगी, सो इसका उत्तर यह है कि, जिस देहांतरमें कर्म किया है, तिसमें यह देह अन्य है; इसवास्ते इस देहको पाप नही लगता है. यह
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