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________________ ર૮ तत्वनिर्णयप्रासादप्रश्नः-कितनेक कहते हैं कि, जैनमतमें पृथिवी स्थिर, और सूर्य चलता है, ऐसा लेख है; और विद्यमान कालमें तो, कितनेक पाश्चात्यादि विद्वान् कहते हैं कि, पृथिवी चलती है, और सूर्य स्थिर है; और कितनेक कहते हैं कि, पृथिवी भी चलती है, और सूर्य भी अपनी मध्यरेखापर चलता है; यह क्यों कर है ? उत्तरः-प्रथम तो हे भव्य ! जैनमतके चौदहपूर्व, एकादशांग, उपांग, प्रकीर्णक, नियुक्ति, वार्तिक, भाष्य, ची, आदि जैसे सुधर्म स्वामी गणधर आदिकोंने रचे थे, और जैलें वनस्वामी दशपूर्वधारीने उनका उद्वार करके नवीन रचना करी, लो ज्ञान प्रायः सर्व, स्कंदिलाचार्यके समय व्यवच्छेद हो गया है; उनमेलें जो शेष किंचित्मात्र रहा, सो नाममात्र रह गया. फिर उस ज्ञानको स्कंदिलादि आचार्य साधुयोंने नाममात्र आचारांगादिको एकत्र करके रचना करी, परंतु स्कंदिलादि आचार्य साधुयोंने खमतिकल्पना कुच्छ भी नही रचा है; जो शेष रह गया था, उसकोही तिल तिस अध्ययन उद्देशे में स्थापन किया. फिर देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणआदिकोंने ताडपत्रोंपर सूलपाठ, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, आदि और अन्यत्रकरणप्रमुख एक कोटि (१०००००००,) पुस्तक लिखें. वे पुस्तक भी, जैनोवती गफलत, मतोंके झगडे, मुसलमानोंके जुलमसें, और गुर्जर देशमें अग्नि आदिके उपद्रवसें, बहुतसे नष्ट होगए; और कितनेक भंडारों में बंद रहनेतें गल गए; जैसें पाटणमें फोफलियावाडेके भंडारमें एक कोठडीने ताडपत्रोंके पुस्तकोंका चूर्ण हुआ भुसकीतरें पडा है. और जैसलमेरमें तो, प्राचीन पुस्तकोंका भंडार कहाँ है, सो स्थानही श्रावकलोक भूल गए हैं. तो भी, डॉक्टर बुल्लर साहिबने, मुंबई हातेमें डेड लाख (१५००००) जैनमतके पुस्तकोंका पता लगाया है; और उनका स्नूचीपत्र भी अंग्रेजीमें छपवाया है, ऐसा हमने सुना है. जब इतने पुस्तक जैनमतके नष्ट होगए हैं तो, हम लोक क्यों कर जैनमतके पुस्तकोंके लेखानुसार सर्व प्रश्नोंका समा. धान कर सके कि, इस अभिप्रायसें यह कथन किया है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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