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________________ ६१४ तत्त्वनिर्णयप्रासादतथा बकुशनिर्ग्रथमें सामायिक, और च्छेदोपस्थापन, यह दो संयम दिगंबराचार्योंने माने हैं. । तथाहि ॥ "आपुलाकबकुशप्रतिसेवनाकुशीला द्वयोः संयमयोः सामायिकच्छेदोपस्थापनयोर्भवंति ॥” इतिराजवार्त्तिकटीकायाम् ॥ तथा ज्ञानार्णवमें शय्या, आसन, उपधान (तकीया) आदि, मुनिकी उपधि कही है; जो पाठ ऊपर लिख आए हैं.। इत्यादि कितनेही दिगंबरशास्त्रोंमें मुनिकी अनेक प्रकारकी उपधि कही है. ऐसे उपकरण रखनेसें दिगंबरमतका मुनि तो, परिग्रहधारी नहीं हुआ, और श्वेतांबरमतका मुनि, चतुर्दशादि उपकरण रक्खे, तिसको परिग्रहधारी मानना, यह मतांधपणा नही तो, अन्य क्या है ? __ और दिगंबराचार्योंको द्रव्यक्षेत्रकालभावकी अनभिज्ञता होनेसें, और अनुचित कठिन मुनिवृत्तिके कथन करनेसें, प्रथम तो मुननी, अर्थात् साध्वी व्यवच्छेद होगई; पीछे साधु व्यवच्छेद होगए. आचार्योपाध्यायका तो कहनाही क्या है !!! और श्वेतांबरमतमें तो, श्रीमहावीरजीसें लेके आजतांइ अव्यवच्छिन्न चतुर्विध संघ चला आता है. और बकुशकुशील इस कालमें जे पाइये हैं, तिनका आचार, व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवतीसूत्र) आदि शास्त्रोंमें कथन करा है, तैसें आचारके पालनेवाले साधु साध्वी सांप्रतिकालमें भी उपलब्ध होते हैं. इस हेतुसें दिगंबरशास्त्रोंकी असत्यता, और श्वेतांबरके शास्त्रोंकी सत्यता, प्रत्यक्ष प्रमाणसेंही देख लो; अन्यप्रमाणकी कुछ आवश्यकता नहीं है. प्रश्रः-केवली कंवलाहार नहीं करता है, और तुम केवलीको कवलाहार मानते हो, सो, किस प्रमाणसें मानते हो ? उत्तरः-आगमप्रमाणसें मानते हैं. क्योंकि, श्रीतत्त्वार्थसूत्रमें परिषहोंका अधिकार चला है, तहां केवली-जिनके क्षुधापिपासादि इग्यारें परिषह कहे हैं, और तुमारे मतकी द्रव्यसंग्रहकी वृत्तिमें चारित्रके अधिकारमें कहा है कि, तीन योगोंका व्यापार जिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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