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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
अन्न, पाणी, और संयम, शौच, ज्ञान, इनके उपकरण, तथा तृणमय प्रावरण, घांसका उत्तरीय वस्त्र, इत्यादि कुछ भी ग्रहण करता है; तथापि तिनमें ममत्व नही करता है. इति । सोही कहा है. । रमणीय धनधान्यादि वस्तु, और वनिता - स्त्री, आदिशब्द सें माता, पिता, पुत्र, पुत्री, भाइ, बहिन, इत्यादिकों में जिसने मोह त्याग दिया है, सो निर्मोही, क्या, संयमके साधनोंमें वृथाही मोह करेगा ? अपितु कभी भी नही. इसबातके दृढ करनेवास्ते दृष्टांत कहे हैं. बुद्धिमान् रोगके भयसें भोजनको त्यागके और औषधको पीके क्या कभी भी अजीर्णकों प्राप्त होता है ? कदापि नहीं. ऐसेंही जन्ममरणादिदुःखरूप रोगके भयसें संसारके मोहरूप भोजनको त्यागके, निःसंग होके, जिनवचनामृतरूप औषधको पीके, संयमके साधनोंमें अजीर्णरूप मोहकों प्राप्त नही होता है. ॥
तथा । राजवार्त्तिकमें भी उपकरणविषयक लेख है. । तथाहि ॥ “| अतिथिसंविभागश्चतुर्विधो भिक्षोपकरणौषधप्रतिश्रयभेदात्॥ २८॥” अतिथिसंविभागश्चतुर्धाभिद्यते । कुतः । भिक्षोपकरणौषधप्रतिश्रयभेदात् । मोक्षार्थमभ्युत्थितायातिथये संयमपरायणाय शुद्धाय शुद्धचेतसा निरवद्या भिक्षा देया धर्मोपकरणानि च सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रोपबृंहणानि दातव्यानि औषधं प्रायोग्यमुपयोजनीयं प्रतिश्रयश्च परमधर्मश्रद्धया प्रतिपादयितव्यइति । च शब्दोवक्ष्यमाणगृहस्थधर्मसमुच्चयार्थः ॥
भाषार्थः - अतिथिसंविभागनामा बारमे (१२) व्रतके चार (४) भेद होते हैं; भिक्षा १, उपकरण २, औषध ३, और उपाश्रय ४; मोक्षकेवास्ते उद्यत संयममें तत्पर ऐसें शुद्ध अतिथि साधुकेतांइ शुद्धचित्तसें निरवद्य-दूषणरहित भिक्षा देनी १, और सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, इनकी वृद्धि कर नेवाले उपकरण देने २, योग्य औषध प्राप्त कर देना ३, और परम धर्म
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