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व्याख्यानमें "श्रीभगवती सूत्र" सटीक वांचना प्रारंभ किया. जो सुननेके वास्ते पूज्य अमरसीघजी भी, अपने सब चेलोंके साथ आया करते थे. श्रोताका जमाव इतना होता रहा कि, मकामें बैठने की जगा भी मिलनी मुश्किल होगई. तब सबने सलाह करके व्याख्यानके वास्ते दूसरा बडा भारी मकान मंजूर किया, और वहां व्याख्यान होने लगा. श्री आत्मारामजीका व्याख्यानामृत सुन करके भी श्रोताजनोंको तृप्ति नहीं होतीथी; अर्थात् श्रवण करनेकी तृष्णा, बढतीही जातीथी. उस समय पूज्य अमरसींघजी तो ऐसे मोहित होगये कि, एक दिन श्री आत्मारामजी - को कहने लगे कि, किसीतरह मेरे चेलोंको भी, यह ज्ञान, सिखाना चाहिये. जिससे जैनमतका बडा भारी उद्योत होवे. तब श्री आत्मारामजीने कहा कि, "पूज्यजी साहिब ! व्याकरणका अभ्यास बिना किये, यह ज्ञान पाना बडाही मुश्किल है; इस लिये प्रथम इनको व्याकरण पढाना चाहिये. " इससें पूज्य अमरसींघजी के प्रायः सब साधु उसवखत पंचसंधि पढने लग गये.
एक दिन श्रीआत्मारामजीने व्याख्यानमें अवसर देखकर कहा कि, “पूर्वाचार्योंके कथन करे अर्थको छोडकर, मनःकल्पित अर्थ करनेवालोंका परलोकमें खबर नहीं क्या हाल होवेगा ? " यह सुनकर, पूज्य अमरसींघजीको गुस्सा आया; और सोदागरमल्ल ओसवाल, श्यालकोटका वासी, ढुंढक श्रावकोंमें मुखी और जानकार किसी कारणसें अमृतसर में आयाथा, तिसको कहने लगे कि, "आज काल आत्मारामको बडाही अभिमान आगया है, परंतु मैं इसका अभिमान दूर करूंगा, मेरे आगे यह क्या चीज है ? " सत्य है अपने चित्तका माना हुआ गर्व किसको सुखदाई नही होता है ?
यतः - टिट्टिभः पादमुत्क्षिप्य शेते भंगभयाद्भुवः ॥
स्वचित्तनिर्मितो गर्वः, कस्य न स्यात् सुखप्रदः ॥ १ ॥
भावार्थ:- टिट्टिभ ( टटीरी ) जानवर, मेरे पैर रखनेसें पृथिवीका भंग न होजावे ! इस भय सें अपने पैरोंको ऊंचे करके सोवे हैं. इसवास्ते अपने चित्तसें बनाया हुआ गर्व (अहंकार) किसको सुख देनेवाला नहीं है ?
अमरसींघको पूर्वोक्त अहंकारमें आये हुऐ जानके, सोदागरमल्लने समझाये कि, " पूज्यजी साहिब ! श्राप आत्मारामजी के साथ मत संबंधी चर्चा कदापि मत करो, यदि करोगे तो, याद रखना ! तुमारे मतकी जड काटी जायगी. मैंने अच्छी तरह समझ लिया है कि, इनके ( आत्मारामजीके) सामने कोई भी जवाब देने को समर्थ नहीं है. " सोदागरमल्लका पूर्वोक्त कहना सुनकर, पूज्य अमरसींघजी हैरान होगये और सुनकर चूपके हो रहे; और श्रीआत्मारामजीकी बराबरी करनेमें असमर्थ होकर, खुशामत करने लग गये. सत्य है "डरती हर हर करती." श्री आत्मारामजीको एकदिन एकांत में ले जाकर ऐसे कहने लगे कि, “बेटा आत्मारामजी ! तू हमारे मतमें लाल (रत्न) पैदा हुआ है. इस वास्ते तुजको ऐसा काम करना चाहिये कि, जिससे हमारा तुमारा आपसमें मतभेद न पडे." तब श्रीआत्मारामजीने कहा, "पूज्यजी साहिब ! जो पिछले आचार्यों का लेख शास्त्रोंमें चला आया है, मैं उससे उलटी प्ररूपणा कदापि न करूंगा. और आपको भी यही उचित है कि, आप जरुर सत्यासत्यका निर्णय कर लेवें. क्योंकि, यह मन
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