________________
त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः ।
५७७
आता है. देखो ! भुजपरिसर्प नीचे दूसरी पृथ्वीतक जाता है, तिससे नीचे न ही जाता है; पक्षी तीसरीतक; चतुष्पद चतुर्थीतक; उरग पांचमीतक; और सर्व उत्कृष्टसें उर्ध्व सहस्रारपर्यंत जाते हैं. और यह भी नियम नही है कि, उत्कृष्ट अशुभ गति उपार्जन सामर्थ्याभाव के हुए, उत्कृष्ट शुभ गति उपार्जनसामर्थ्य भी नही होना चाहिये; अन्यथा तो, प्रकृष्टशुभगति उपार्जनसामर्थ्याभाव के हुए, प्रकृष्ट अशुभ गति उपार्जनसामर्थ्य भी नही है, ऐसें क्यों न होजावे ? और तैसें हुए, अभव्य जीवोंको सप्तम नरकगमन नही होवेगा, इस वास्ते सप्तम पृथ्वीगमनायोग्यत्वको लेके, विशिष्ट सामर्थ्यासत्त्व, स्त्रियोंको नही कह सकते हो.
अथ । वादादिलब्धिरहित होनेसें, स्त्रियोंको विशिष्टसामर्थ्याभाव है; जिसमें निश्चित इस लोकसंबंधी, वाद, विक्रिया, चारणादिलब्धियोंका भी हेतु, संयमविशेषरूप सामर्थ्य नहीं है, तिसमें मोक्षहेतु संयमविशेषरूप सामर्थ्य होवेगा, ऐसा कौन बुद्धिमान् मानेगा ?
श्वेतांबर : - यह कहना शोभनिक नही है, व्यभिचार होनेसें; माषतुषादिमुनियोंको तिन लब्धियोंके अंभाव हुए भी, विशिष्टसामर्थ्य की उपलब्धि होनेसें. और लब्धियोंको संयमविशेषहेतुकत्व आगमिक नही है. क्योंकि, आगममें लब्धियोंका हेतु, कर्मका उदय, क्षय, क्षयोपशम, और उपशम कहा है. तथा चक्रवर्त्ति, बलदेव, वासुदेव, आदि लब्धियां, संयमहेतुक नही है. होवे संयमहेतुक लब्धियां, तो भी स्त्रियों में तिन सर्व लब्धियोंका अभाव कहते हो, वा कितनीक लब्धियोंका ? आय पक्ष तो नही. क्योंकि, चक्रवर्त्यादि कितनीक लब्धियोंका तिनमें अभाव है; परंतु आमषैषध्यादि बहुतसी लब्धियां तो तिनमें है. और दूसरे पक्ष में व्यभिचार है; पुरुषोंको सर्व वादादि लब्धियों के अभाव हुए भी, विशिष्टसामर्थ्य अंगीकार करनेसें, वासुदेवरहित, अतीर्थंकरचक्रवत्र्त्यादिकों को भी मोक्षका संभव होनेसें. और अल्पतपणा भी, मुक्तिकी प्राप्तिकरके, अनुमित विशिष्टसामवाले मापतुषादिकों के साथ अनेकांत होनेसें, कहनेयोग्यही नही है.
७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org