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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
द्वित्राः स्युर्बहवो यदि त्रिचतुरास्ते पंचषा दुर्लभाः ॥ ते संति द्वित्रा यदि इति कथनात् ज्ञानार्णवेप्युक्तम् ॥
इस कालमें घने जीव आपकूं सम्यग्दृष्टि माने हैं तो, मानो; परंतु शास्त्रविषे तीनचारही कहे हैं. और पंचलब्धिका स्वरूप भलीभांति जाना होइ तो, आपको सम्यग्दृष्टिका अनुमान भी न करे. कोई ऐसे भी कहै हैं, निश्चयक भगवान् जाने, अनुमानसों मेरे सम्यक्त है यह भी श्रद्धान, मिथ्या है. जाते सम्यक्त अनुमानका विषय नही. ॥ " इस लेखका समालोचन - जब भरतखंडमें दो तीन जघन्य, और उत्कृष्ट पांच, वा छह (६) सम्यक्त्वधारी जीव वर्तमानकालमें लाभे हैं, वे भी गृहस्थ हैं, वा साधु हैं, यह निश्चय नही. तब तो, सर्व भरतखंड में दो, वा छ (६) तक वर्जके, जितने दिगंबर श्रावक, श्राविका, नग्नसाधु, भट्टारक, पांडे, और क्षुल्लक, ये सर्व मिथ्यादृष्टि सिद्ध होवेंगे. प्रथम तो, साधु, साध्वीके व्यवच्छेद हो जानेसें, श्रावक श्राविकारूप दोही संघ रह गए हैं. स्वामीकार्तिकेयादिने तो, दिगंबरोंको सम्यग्दृष्टि होने की भी नहींही लिख दीनी. ग्रंथकारोंने भूल करके तो, नहीं दो तीन सम्यग्दृष्टि लिख दीए होवेंगे! क्योंकि, दो संघियों में तो, सम्यग्दर्शनका संभवही नही है.
प्रश्नः - दो संघिये कौन है ?
उत्तर:- प्रियवर ! संप्रतिकालमें, जो भरतखंड में दिगंबरमत चलता है, सो दो संघिया है. क्योंकि, इनके मतमें साधु साध्वी तो हैही नहीं. श्रावक श्राविका नाममात्र दो संघ है, इसवास्ते ये दो संघिये हैं; और इसीवास्ते ये मिथ्यादृष्टि हैं. क्योंकि, तीर्थंकर भगवान्के शासन में तो चतुर्विध संघ कहा है; इसवास्ते ये जिनराजके शासन में नही मालुम होते हैं, दो संघिये होनेसें.
प्रश्नः - इनके दो संघ, किसवास्ते व्यवच्छेद होगए ?
उत्तरः- प्रथम तो श्रीवीरनिर्वाणसें ६०९ वर्षे, इनका मत चला था, तबही इनके तीन संघ चले हैं. क्योंकि, पंचमहाव्रतधारणवाली साध्वी तो इनके मतमें होही नही सकती है, वस्त्र रखनेसें तिसको तो ये
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