________________
દ
तत्त्वनिर्णयप्रासाद
दिगंबरमुनि हमने कोइ भी देखा, वा सुना नही है. परंतु भट्टारक परिग्रहधारी, और भट्टारककी आज्ञासें श्रावकों के पाससें रूपइए उग्राह करके भट्टारकोंको ल्यादेनेवाले, ऐसे ' क्षुल्लक ' नामसें प्रसिद्ध, वे तो हैं. इसवास्ते यथोक्तवृत्ति पालनेवाला नन दिगंबरसाधु अद्यतनकालमें कोइ भी नही है. जेकर अंग्रेजी राज्यमें रेल तारके हुए भी, श्रावगीलोग (दिगंबर मतावलंबी) अपने सच्चे गुरुकी शोध नही करेंगे तो, कब करेंगे !!! सत्य तो यह है कि, ऐसे गुरु हैही नही. क्योंकि, ऐसी अनुचितवृत्ति तो कथन कर दीनी, परंतु तिसको पाले कोन ? इसवास्ते चउदह उपकरणधारी श्वेतांबरीही साधु है, अन्य नहीं. * । ५ ।
छट्ठे अंकका उत्तर - रोगी ग्लानी साधु मद्यमांससहितका आहार करे तो दोष नही, ऐसा पाठ श्वेतांबरके किसी भी आगममें नही है. । ६ ।
और जो लिखा है कि, तिनीकी साधक कल्पित कथा बणाय लिखी, एक साधुको मोदकका भोजन करताही आत्मनिंदा करी, तब केवल
ज्ञान उपज्या,
उत्तर यह लेख मिथ्या है श्वेतांबरशास्त्रमें ऐसा लेख नही है.
एक कन्याको उपाश्रयमें बुहारी देतेही केवलज्ञान उपज्या, यह लेख भी मिथ्या है, शास्त्र में न होनेसें । गुरुचेले की बाबत लिखा है, सो भी मिथ्या है, ऐसा लेख न होनेसें. महावीरजीको गर्भसें बदला, यह अच्छेरा हुआ माना है. फिर इसमें तर्क क्या है? और जो गोसालेने श्रीमहावीरजीके ऊपर तेजोलेश्या फेंकी सो सत्य है. और तिस तेजोलेश्याकी गरमीसें भगवंतके शरीर में पित्तज्वर और पेचसका रोग उत्पन्न हुआ, यह कथन तो सत्य है, परंतु यह तो सर्व श्वेतांबरोंके शास्त्रमें अच्छेराभूत माना है. और असातावेदनीय कर्मका
1 फर्रुखनगर निवासी चौधरी जियालालजीने जैनबद्री मूलबद्रीके वर्णनका पुस्तक प्रसिद्ध करा है, तिसमें मूलबद्री में ३० घर लिखे हैं, और जैनबदीमें १०० घर जैनीयोंके लिखे हैं, परंतु ऐसा कहीं नही लिखा है कि, हम यात्रा करते हुए फलाने नगरमें गए, और हमने मुनमहाराजके दर्शन पाए, पाप कटाए; दिगंबर जैनबद्री बंगलूरकों कहते हैं, और मूलबद्री मूडबद्रीको कहते हैं. ॥
+ * चतुर्दश (१४) उपकरण औधिकउपधिकी अपेक्षा जाणने. क्योंकि, जैनमतके शास्त्रोंमें दो प्रकाकी उपाधि कही है. औधिक और औपग्राहिक. ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org