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________________ त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः। गृह्णतोस्य प्रयत्नेन क्षिपतो वा धरातले ॥ भवत्यविकला साधोरादानसमितिः स्फुटम् ॥१६॥ भाषार्थः-शय्या आसन उपधान शास्त्र उपकरण इनकू पहिलै नीकै देख अर फेरिफेरि प्रतिलेषण कर अर ग्रहण करै, ताकै अर बडा यत्न कर पृथ्वीतलमै धरै, ताकै संपूर्ण आदाननिक्षेपणसमित प्रगट कही है, तथा योगेंद्रदेवकृत परमात्मप्रकाशकी टीकामें दिगंबरमुनिको तृणके अर्थात् घासके प्रावरण-प्रच्छादन रखने कहे हैं, और मोरपीछी कमंडल तो प्रसिद्धही है. जब दिगंबरमुनि शय्या १, आसन २, उपधान--गिंदुक तकिया ३, शास्त्र ४, शास्त्रके उपकरण पाटी ५, बंधन ६, दोरा ७, टिद्विका ८, तृणके प्रावरण ९, पीछी १०, कमंडलु ११, इत्यादि उपकरण रखते थे, वा दिगंबर मुनिको रखनेकी आज्ञा है, तब तो वे भी तुम्हारे कहनेसें तिन ऊपर मूर्छा ममत्व करते होवेंगे; तब तो दिगंबर मनियोंको परिग्रह धारी होनेसे कदापि साधुपणा, केवलज्ञान, मुक्ति न होवेगी, तब तो दिगंबरमत प्रेक्षावानोंको उपादेय नही होवेगा. इससे तो तुमने श्वेतांबरोकी हानि करते हुयोंने, अपनेही पगमें कुठार मारा सिद्ध होवेगा.। ४ । ___ पांचमे अंकमें लिखा है साधु उपकरण चौदह राखे, सो सत्य है क्योंकि, उपकरणोंके विना राखे प्रायः संयमका पालना नही होता है. इसवास्तेही तो दिगंबर साधु सर्व व्यवच्छेद होगए. हां कल्पित साधु कहांतक रह सकते हैं! दिगंवरः-हमारे मतके नग्नमुनि कर्णाटक आदि देशोमें जैनबद्री. मूलबद्री आदि नगरोंमें अब भी हैं. श्वेतांबर:-यह तुम्हारा कहना महामिथ्या है. क्योंकि, कर्णाटक देशके रहनेवाले नागराज नामा जैन ब्राह्मणको, तथा मारवाडी, कच्छी, गुजराती, श्वेतांबर तथा दिगंबर जे कर्णाटकादि देशोंके जैनबद्री मूलबद्रीं आदि नगरोमें यात्रा करके आए हैं, तिनसे हमनें अच्छीतरेसें पूछा है कि, तुमने यथोक्त मुनिवृत्तिका पालनेवाला दिगंबरमतका नग्न साधु, कोई देखा, वा सुना है ? तब तिन्होंने कहा कि, नग्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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