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________________ ५५२ तत्त्वनिर्णयप्रासादआए ? किसने पढाये? कौन पढे ? क्योंकि, धरसेनका मृत्यु ६३३ में हुआ, पुष्पदंतका मृत्यु ६६३ में हुआ, और भूतबलिका मृत्यु ६८३ में हुआ, पूर्वोक्त लेखसे सिद्ध होता है, तो फिर, चरचासमाधान बनानेवालेने श्रीवीरनिर्वाणसे ६८३ वर्षे तीनोंका मिलाप कैसें कराय दिया? और तिन दोनों भूतबलिपुष्पदंतने जेष्ठसुदि ५ को तीन सिद्धांत बनाये यह कैसे लिख दिया ? यह तो ऐसे हुआ, जैसें कोइ कहे-" मम मुखे रसना नास्ति, वा मम माता वंध्या वर्त्तते"-इसवास्तेही श्वेतांबरमतोत्पत्तिकी बाबत जो लेख लिखा है,सो स्वकपोलकल्पित है; सत्य नहीं है. तथा मथुराके पुराने टीलेमेंसें खोदनेसें स्तंभ तथा महावीरस्वामीकी मूर्ति ऊपर शिलालेख निकले हैं, तिन लेखोंके वाचनेसें जो कल्पना दिगंबराचायोंने श्वेतांबरमतकी उत्पत्तिबावत लिखी है, सो सर्व मिथ्या सिद्ध होती है; वे सर्व लेख आगे चलकर लिखेंगे. दिगंबरः-तत्त्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिद्धिभाषाटीकाके प्रारंभमेंही श्वेतांबरमतकी बाबत ऐसा लेख लिखा है-तथाहि-श्रीवर्द्धमान अंतिम तीर्थकरके निर्वाण भया पीछे तीन केवली तथा पांच श्रुतकेवली इस पंचमकालविषे भये, तिनमें अंतके श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामीके देवलोक गया पीछे कालदोषतें केतेइक मुनि शिथलाचारी भये, तिनका संप्रदाय चल्या, तिनमें केतेइक वर्षपीछे एकदेवर्षिगणि नामा साधु भया, तिन विचारी जो हमारा संप्रदाय तो बहुत वध्या, परंतु शिथलाचारी कहावे है, सो यह शक्ति नहीं, तथा आगामी हमतें भी हीनाचारी होयगे, सो ऐसा करीये जो इस शिथलाचारकू कोइ बुद्धिकल्पित म कहे. तब तिसके साधनेनिमित्त सूत्र रचना करी, चौरासी सूत्र रचे, तिनमें श्रीवर्द्धमानस्वामी और गौतमस्वामी गणधरका प्रश्नोत्तरका प्रसंग ल्याय शिथलाचारपोषणके हेतु दृष्टांतयुक्ति बनाय प्रवृत्ति करी, तिन सूत्रनिके आचारांगादि नाम धरे, तिनमें केतेइक विपरीत कथन कीये; केवली कवलाहार करे, स्त्रीकू मोक्ष होय, स्त्री तीर्थंकर भया, परीग्रहसहितकू मोक्ष होय, साधु उपकरण वस्त्र पात्र आदि चौदह राणे, तथा रोगग्लान आदि वेदनाकरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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