________________
त्रयस्त्रिंशस्तम्भः। एक सहस्रमल्लशिवभूतिनामकरके पुरुष था, तिसकी भार्या तिसकी माताकेसाथ (सासुकेसाथ) लडती थी कि, तेरा पुत्र दिन २ प्रति आधी रात्रिको आता है; मैं, जागती, और भूखी पियासी तबतक बैठी रहती हूं. तब तिसकी माताने अपनी वहुसें कहा कि, आज तूं दरवाजा बंद करके सो रहे, और मैं जागुंगी. वहु दरवाजा बंद करके सो गई, माता जागती रही; सो अर्द्धरात्रि गए आया, दरवाजा खोलनेकों कहा, तब तिसकी माताने तिरस्कारसे कहा कि, इस वखतमें जहां उघाडे दरवाजे हैं, तहां तूं जा. सो वहांसे चल निकला, फिरते फिरतेने साधुयोंका उपाश्रय उघाडे दरवाजेवाला देखा, तिसमें गया. नमस्कार करके कहने लगा, मुझको प्रवजा (दीक्षा) देओ. आचार्योंने ना कही, तब आपही लोच करलिया, तब आचार्योंने तिसको जैनमुनिका वेष दे दीया. तहांसें सर्व विहार कर गए. कितनेक कालपीछे फिर तिसी नगरमें आए, राजाने शिवभूतिको रत्नकंबल दीया, तब आचार्योंने कहा, ऐसा वस्त्र यतिको लेना उचित नही; तुमने किसवास्ते ऐसा वस्त्र ले लीना? ऐसा कहके तिसको विनाहीपूछे आचार्योंने तिस वस्त्रके टुकडे करके रजो. हरणके निशीथिये कर दीने. तब, सो गुरुयोंके साथ कषाय करता हुआ.
एकदा प्रस्तावे गुरुने जिनकल्पका स्वरूप कथन करा, जैसें जिनकल्पि साधु दो प्रकारके होते हैं; एक तो पाणिपात्र, और ओढनेके वस्त्रोंरहित होता है; दूसरा पात्रधारी, और वस्त्रोंकरके सहित होता है. जे वस्त्रधारी होता है, सो आठ तरेंका होता है. रजोहरण, मुखवस्त्रिका एवं दो उपकरणधारी ।१। दो पीछले और एक पछेवडी (चादर. एवं तीन उपकरणधारी । २। दो पछेवडी होवे तो चार ।३। तीन पछेवडी होवे तो पांच । ४ । रजोहरण मुखवस्त्रिका २, पात्र ३ पात्रबंधन ४, पात्रस्थापन ५, पात्रकेसरिका ६, तीन पडले ७, रजस्त्रा ८, गोच्छक ९, एवं नव उपकरणधारी। ५। पूर्वोक्त नव, और एक पछेवर्ड एवं दश उपकरणधारी। ६। दो पछेवडी और पूर्वोक्त नव, एवं इग्यार उपकरणधारी ।७। तीन पछेवडी और पूर्वोक्त नव, एवं बारां उपकरण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org