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तत्त्वनिर्णयप्रासादसिद्ध होता है ३, वीर भगवानका गर्भपरावर्तन ४, परलिंगमें भी मुक्ति ५, प्रासुकभोजन ऊंच नीच सर्व कुलोंका साधुको कल्पे ६, इत्यादि और भी आगमको उत्थापके मिथ्याशास्त्र बनायके अपने आत्माको प्रथम नरकमें स्थापन करा. इति-तथा मुनि वस्त्र रक्खे १, केवली आहार करे २, स्त्रीकी मुक्ति होवे ३, इत्यादि श्वेतांबरमतके माने कितनेही पदार्थोंका खंडन हमारे अकलंक देवविरचित लघुत्रयी वृद्धत्रयीमें, तथा प्रमेयकमलमार्तंड, षट्पाहुडादि अनेक ग्रंथोंमें प्रमाण युक्तिसें करा है, तो फिर हम श्वेतांबरमतको असली सञ्चा जैनमत कैसे माने ?
श्वेतांबरः-प्रियवर ! जैसें तुम्हारे देवसेनाचार्य, जो कि विक्रमसंवत् ९९० के लगभगमें हुए हैं, तिनोंने दर्शनसारमें-जो कि विक्रमसंवत् ९९० में बनाया है-श्वेतांबरमतकी उत्पत्ति विक्रमके मृत्युपीछे १३६ वर्षे लिखि है; तैसेंही पूर्वोके ज्ञानधारी श्वेतांवरीयोंने आवश्यकनियुक्ति, भाष्य, चूर्णिमें दिगंबरमतकी उत्पत्ति लिखि है, सो ऐसें है.
छव्वाससयाइं नवुत्तराई तईया सिद्धि गयस्स वीरस्स ॥ तो बोडियाण दिट्टी, रहवीरपुरे समुप्पण्णा ॥९२॥ रहवीरपुर नगरं, दीवगमुजाणमजकण्हेय ॥ सिवभूईस्सुवहिम्मि, पुच्छा थेराण कहणा य ॥९३॥ ऊहाएपन्नत्तं, बोडियसिवभूइउत्तराहि इमं ॥ मिच्छादसणमिणमो, रहवीरपुरे समुप्पण्णं ॥९४॥ बोडियसिवभूईओ, बोडियलिंगस्स होइ उप्पत्ती ॥
कोडिन्नकोटवारा, परंपराफासमुप्पन्ना ॥९५॥ भाषार्थः-श्रीमहावीर भगवंतके निर्वाण हुआ पीछे ६०९ वर्षे बोटिकोंके मतकी दृष्टि अर्थात् दिगंबरमतकी श्रद्धा रथवीरपुर नगरमें उत्पन्न हुई । अब जैसें बोटिकोंकी दृष्टि उत्पन्न हुई है तैसें संग्रहगाथाकरके दिखलाते हैं । रहवीर-रथवीरपुर नगर तहां दीपकनामा उधान तहां कृष्णनामा आचार्य समोसरे, तहां रथवीरपुर नगरमें
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