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त्रयस्त्रिंशस्तम्भः। खामी, एकलेही महावीरस्वामीके पीछे जीते रहे थे; और अपने गुरुके निर्वाणपीछे इनोंहीने अग्रेश्वरीपणा धारण करा था.
महावीरस्वामी बुद्धके सहकाली होनेसें, इन दोनोंके एकसदृशही सहकालिक थे, तिनका व्योरा (खुलासा) बिंबीसार, और तिसका पुत्र अभयकुमार, और अजातशत्रु लच्छवी और मल्लि, और मंखलिपुत्र गोशालक, इन पुरुषोंके नाम, दोनों मतोंके पवित्र पुस्तकोंमें हम तुम देखते हैं. अपनेको पीछेसें खबर हुई है, तैसेंही बुद्धलोककी पीठिकामेंसें ऐसा मालुम होता है कि, वैशालीमें महावीरस्वामीके भक्त श्रावक बहुत थे. यह बात जैनलोक कहते हैं कि, इस नगरके पासही महावीरस्वामीका जन्म हुआ था, तिसके साथ संपूर्ण, और फिर इस नगरीके मुख्य अधिकारीके साथ महावीरका संबंध था, सो पीठिकाके कथनके साथ अच्छीतरें मिलता आता है; इसके विना भी पीठिकामें निग्रंथोंका मत, जैसे क्रियावाद, (आत्मा नित्य है, तिसको अपने करे कर्मका फल इसलोक परलोकमें भोगना पडता है.) और पाणीमें जीव है, ऐसा मानना बुद्धलोकोंके शास्त्रोंमें लिखा है, सो. जैनमतके साथ संपूर्ण मिलता आता है. सबसे पीछे नातपुत्तके निर्वाणका स्थल बुद्धलोक पापापुरमें मानते हैं, सो सच है-इत्यादि अनेक बुद्धके, और महावीरके वृत्तांतका परस्परविशेष दिखलाके, बुद्ध पुरुष बौद्धमतके चलानेवाला, और महावीर जैनमतका चलानेवाला, ये दोनों पुरुष अलग अलग थे. और बुद्धके मतसें जैनमत पहिलेका है, ऐसा सिद्ध करा है. इससे जैनमत बुद्धमतसे नहीं निकला है, और न बुद्धमतकी शाखा है; किंतु बुद्धमतसें पहिलेंका प्राचीन मत है.
तथा “सेक्रेडबुक्स आफ धी इस्ट" के ४५ मे भागतरीके उत्तराध्ययन, और सूत्रकृतांगके भाषांतर करनार प्रोफेसर हरमॅन जाकोबी, प्रसिद्ध करनार प्रोफेसर मॅक्ष मुल्लर, तिस पुस्तककी भूमिकामें लिखते हैं किबौद्धासद्धांतका लिखान, नातपुत्तके पूर्व निर्ग्रथोंके अस्तित्वसंबंधी अपने विचारोंसें विरुद्ध नहीं है, क्योंकि, जब बुद्धधर्म सुरु हुआ, तिस वखतमें
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