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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद हुए, हिरण्यगर्भसें लेके स्तंव (सरकडे ) पर्यंत सर्वको जो उत्पन्न करता हुआ है, 'सनेमि' चिरंतन राजा दीपता हुआ, सर्व स्थानों में अपनी इच्छासें जाता है. कैसा नेमि राजा ? ' विद्वान्' अपने अधिकारको जानता हुआ, तथा हमारेविषे पुत्रादिसंततिको, और धनपोषको वृद्धि करता हुआ, सनेनि सुहुतमस्तु, तिसको आहूति होवे. ॥ अब इसी श्रुतिके भाग्य में दयानंदसरस्वतिस्वामी ऐसा अर्थ लिखते हैं. ॥ ( वाजस्य ) वेदादिशास्त्रोंसें उत्पन्न हुए बोधको (नु ) शीघ्र (प्रसवः) जो उत्पन्न करता है सो (आ) सर्वओरसें ( बभूव ) होवे (इमा ) यह (च) (विश्वा) सर्व ( भुवनानि ) मांडलिकराजायोंके निवास करनेके स्थानक ( सर्वतः ) ( सनेमि ) सनातननेमिना धर्मेण धर्मकरके सहित वर्त्तमान जो होवे राज्यमंडल (राजा) वेदोक्त राजगुणोंकरके प्रकाशमान ( परि ) ( याति ) प्राप्त होता है ( विद्वान् ) सकल विद्याका जानकार ( प्रजाम् ) पालने योग्य ( पुष्टिम् ) पोषणको ( वर्धयमानः ) ( अस्मे ) हमारा ( स्वाहा ) सत्यनीतिकरके ॥ ra पक्षपातरहित होकर पाठक जनोंको विचार करना चाहिये कि, महीधरजीने इसही अध्यायकी सोलमी श्रुतिमें ' सनेमि शब्दका अर्थ क्षिप्र करा है, और पच्चीसमी श्रुतिमें 'सनेमि ' शब्दका अर्थ निघंटुके प्रमाणसें पुराणनाम तिसका अर्थ चिरंतन राजा करा है. दयानंदसरस्वतिजीने इस 'नेमि' शब्दका अर्थ सनातन धर्म करा है. अब इनमेसें कौनसा अर्थ सत्य है ? और कौनसा मिथ्या है ? यह निश्चय, कदापि न होवेगा. क्योंकि, नेमिशब्द की व्युत्पत्तिसें पूर्वोक्त तीनों अर्थोंमेंसें एक भी नही निकलता है. इसवास्ते वेदोंकी श्रुतियोंके अर्थ, ठीकठीक प्रायः नही मालुम होते हैं. सो, प्रायः लिखही आये हैं. विशेषतः इस श्रुतिका अर्थ, जैसा पूर्वे लिखा है, वैसा घटमान भी नही लगता है, यथार्थ अभिप्रायके न ज्ञात होनेसें. पूर्वपक्ष:- आपके अभिप्रायमुजब इस श्रुतिका कैसा अर्थ होना चाहिये ? Jain Education International For Private & Personal Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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