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________________ ५०६ तत्त्वनिर्णयप्रासाद हुए भी अर्थोंमें, सायणाचार्य शंकराचार्यादिकोंने गडबड कर दीनी हैं. अन्य एक यह भी प्रमाण है कि, जैनमतके आचार्य श्रीभद्रवाहुस्वामी, शब्दांभोनिधि महाभाष्यके कर्त्ता श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, 'इत्यादिकोंने तथा आवश्यकवृत्तिकार श्रीहरिभद्रसूरि श्रीमलयगिरिजीने, जे जे श्रुतियां वेदोंकी लिखी हैं, तथा कल्पलता टीका, विधिकंदली, और उत्तराध्ययन सूत्रके पच्चीसमे अध्ययनमें, जे जे श्रुतियां आरण्यकादिकोंकी लिखी हैं; तिन पूर्वोक्त श्रुतियोंमें कितनीक श्रुतियां, ऋग्वेद, यजुर्वेद, तैत्तिरीयारण्यक, बृहदारण्यक उपनिषदादिकों में मिलति हैं; और कितनीक श्रुतियां तिन पुस्तकों में नही मिलती हैं. इससे भी यही सिद्ध होता है क. वे मंत्र श्रुतियां व्यवच्छेद होगइ होवेगी, वा ब्राह्मणोंने जानबूझके निकाल दीनी होवेगी, वे सर्व श्रुतियां आगे लिख दिखाते हैं. ॥ १ ॥ विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थायतान्येवानुविनश्यति न प्रेत्य संज्ञास्ति ॥ २ ॥ सवै अयमात्मा ज्ञानमयः ॥ ३ ॥ नवै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहतिरस्त्यशरीरं वा वसंतं प्रियाप्रिये न स्पृशत इति ॥ ४॥ अग्निहोत्रं जुहुयात्स्वर्गकामः ॥ ५ ॥ अस्तमिते आदित्ये याज्ञवल्क्यः चंद्रमस्यस्तमिते शांतेग्नौ शांतायां वाचि किं ज्योतिरेवायं पुरुषः आत्मा ज्योतिः साम्राडितीहोवाच ॥ ६ ॥ पुरुष एवेदंनिं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यं उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति यदेजति यन्नेजति यहरे यदु अंतिके यदंतरस्य सर्वस्य यदु सर्वस्यास्य बाह्यत इत्यादि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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