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________________ ५०३ द्वात्रिंशस्तम्भः। ने यह विधि इस ग्रंथमें गुंथन किया है. जिससे कि, लोकोको मालुम होवे कि, जैनमतमें भी षोडशसंस्कारोंका वर्णन है.। तथा इस जैनसंस्कारविधिको, मिथ्यात्व भी नही जानना. क्योंकि यह लौकिकव्यवहाररूप प्रायः है, धर्मरूपही नही है. और आगममें चरितानुवादसे किसी किसी संस्कारविधिका संक्षेपसे कथन भी है.। श्रीभगवतीसूत्र, ज्ञातासूत्र, आचारांगसूत्र, दशाश्रुतस्कंधसूत्रादि शास्त्रानुसारें चरितानुवाद जानना. __ अब मैं श्रीसंघसें नम्रतापूर्वक विनती करता हूं कि, यह विधि लिखनेके समयमें एकही ग्रंथ विद्यमान था, और नकल करनेके समय दूसरा मिला था, तिससे प्रायः खमत्यनुसार शुद्ध करके लिखा है, तथापि, किसी स्थानपर द्रष्ट्यादिदोषसें अशुद्ध लिखा गया होवे, वा जिनाज्ञाविरुद्ध लिखा गया होवे, सो मुझे माफ करेंगे, और शुद्ध करके वांचेंगे। इत्यलम्म् ॥ ॥ अथद्वात्रिंशस्तम्भारम्भः॥ अब इस स्तंभमें जैनमतकी प्राचीनताका थोडासा खुलासा करते हैं.॥ पूर्वपक्षः-जैनमत जेकर प्राचीन होवे तो, तिसका लेख, वा नाम, वेदोंमें होना चाहिये; परं है नहीं, इसवास्ते जैनमत नवीन है, प्राचीन नही है.॥ उत्तरपक्षः-प्रियकर ! प्रथम तो वेदकाही कुछ ठिकाना नही है. क्योंकि, प्रथम ऋगवेदकी ८, कृष्णयजुर्वेदकी ८६, शुक्लयजुर्वेदकी १७, सामवेदकी १०००, और अथर्ववेदकी ९ शाखा. ये सर्व शाखायोंके वेदपाठमें परस्पर अन्यत्व है. जैसें जर्मनीके छपे शुक्लयजुर्वेदमें माध्यंदिनी, और काण्वशाखाके वेदपाठ पृथक् २ है. ऐसेंही सर्व शाखायोंमें जानना. इन शाखायोंमेंसें बहुत शाखा तो नष्ट होगइ हैं, तो फिर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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