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त्रिंशस्तम्भः। ऐसें क्रमसें दिकपालपूजन करे । तदपीछे फिर भी हाथमें पुष्पांजलि लेकर आर्या पढे ॥ यथा ॥
॥आर्या ॥ दिनकरहिमकरभूसुतशशिसुतबृहतीशकाव्यरवितनयाः॥ राहो केतो क्षेत्रप जिनार्चने भवत सन्निहिताः ॥१॥ यह पढके ग्रहपीठोपरि पुष्पांजलिक्षेप करे । तदपीछे पूर्वादिक्रमसें सूर्य, शुक्र, मंगल, राहु, शनि, चंद्र, बुध, बृहस्पति, इनको स्थापन करे. हेठ केतुको, और ऊपर क्षेत्रपालको स्थापन करे. । तदपीछे प्रत्येक ग्रहका पूजन करे। तयथा ॥ ॥ वसंततिलका ॥
विश्वप्रकाशकृतभव्यशुभावकाश ।
ध्वांतप्रतानपरिपातनसहिकाश ॥ आदित्य नित्यमिह तीर्थकराभिषेके।
कल्याणपल्लवनमाकलय प्रयत्नात् ॥ १॥ “॥ॐ सूर्य इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति सूर्यपूजनम् ॥ १ ॥
॥ मालिनी॥ स्फटिकधवलशुद्धध्यानविध्वस्तपाप ।
प्रमुदितदितिपुत्रोपास्यपादारविंद ॥ त्रिभुवनजनशवजंतुजीवानुविद्य ।
प्रथय भगवतोच्चा शुक्र हे वीतविघ्नाम् ॥१॥ “॥ ॐ शुक्र इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति शुक्रपूजनम् ॥ २॥
॥ आर्या ॥ प्रबलबलमिलितबहुकुशललालनाललितकलितविघ्नहते।
भौमज़िनस्नपनेऽस्मिन् विघटय विनागमं सर्वम् ॥ १॥ “॥ ॐ मंगल इह शेषं पूर्ववत् ॥” इति मंगलपूजनम् ॥३॥
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