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त्रिंशस्तम्भः।
४७५ "॥ॐ अहं अर्हगताष्टनवत्युत्तरशतदेवजातयः सदेव्यः पूजां प्रतिच्छंतु सुपूजिताः संतु सानुग्रहाः संतु तुष्टिदाः
संतु पुष्टिदाः संतु मांगल्यदाः संतु महोत्सवदाः संतु॥” ऐसे कहके जिनपादाने अंजलिक्षेप करे. ॥
तदपीछे अंजलिके अग्रभागमें पुष्प धारण करके अर्हन्मंत्र स्मरण करके तिस फूलसें जिनप्रतिमाको पूजे।
अर्हन्मंत्रो यथा ॥ “॥ॐ अहँ नमो अरहंताणं ॐ अहं नमो सयंसंबुद्धाणं ॐ अहँ नमो पारगयाणं ॥” यह त्रिपद मंत्र श्रीमत् अर्हन् भगवंतोंके आगे नित्य स्मरण करे. कैसा है मंत्र? भोगदेवलोकादि सुख और मोक्षका देनेवाला है. तथा सर्व पापोंका नाश करनेवाला है. । विशेष इतना है कि, यह मंत्र अपवित्र पुरुषोंने, अन्यचित्तवाले अर्थात् उपयोगरहित पुरुषोंने, नही स्मरण करना. तथा सस्वर अर्थात् उच्चशब्दसे नही स्मरण करना, नास्तिकोंको नहीं सुनावना, और मिथ्यादृष्टियोंको भी नही सुनावना. । यह पूर्वोक्त अर्हन्मंत्र एकसौआठ (१०८) वार, वा तदर्द्ध अर्थात् ५४ वार जपे. ॥ .
तदपीछे दो पात्रोंकरके नैवेद्य ढोकन करे. पीछे एक पात्रमें जलका चुलुक लेके।
ॐ अहं । नानाषड्रससंपूर्ण नैवेद्यं सर्वमुत्तमं ॥ जिनाग्रे ढोकतं सर्वसंपदे मम जायतां ॥१॥ यह पढके एकत्र नैवेद्यमें चुलुकक्षेप करे. । फिर दूसरा जलचुलुक लेके। “॥ ॐ सर्वे गणेशक्षेत्रपालाद्याः सर्वग्रहाः सर्वे दिक्पालाः सर्वेऽस्मत्पूर्वजोद्भवादेवाः सर्वे अष्टनवत्युत्तरशतं देवजातयः सदेव्योऽर्हद्भक्ताः अनेन नैवेद्येन संतर्पिताः संतु सानुग्रहाः संतु तुष्टिदाः संतु पुष्टिदाः संतु मांगल्यदाः संतु महो
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