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भो भो सलनिअम्म निचिअअइगरुअपुन्नपप्भार ॥ नारयतिरिअगईओ तुज्झावस्सं निरुद्धाओ ॥ ३ ॥ नो बंधगोसि सुंदर तुममित्तो अयकनी अगुत्ताणं ॥ नो दुलो तुह जम्मंतरेवि एसो नमुकारो ॥ ४ ॥ पंचनमुक्कारभावओ अ जम्मंतरेवि किर तुज्झ ॥ जाईकुलरूवाग्गसंपयाओ पहाणाओ ॥ ५ ॥ अन्नं च इमाओच्चिअ न हुंति मणुआ कयावि जीअलोए ॥ दासा पेसा दुभगा नीआ विगलिंदिआ चेव ॥ ६॥ किंबहुना जे इमिणा विहिणा एअं सुअं अहिजित्ता ॥ सुअमणि अविहाणेणं सुद्धे सीले अभिरमिज्जा ॥ ७ ॥ नो ते जइ तेणचिअ भवेण निवाणमुत्तमं पत्ता ॥ तोत्तर विजाइएस सुइरं अन्निरमेउं ॥ ८ ॥ उत्तभकुलम्मि उक्लिठ्ठसंग सुदरापयडा | सवुकलापतहा जणमणआणंदणी होउं ॥ ९ ॥ देविंदोवमरिन्दी दयावरा दाणविनयसंपन्ना | निविणकामभोगा धम्मं सयलं अणुट्ठेउं ॥ १० ॥ सुहज्झाणानलनिदढ घाइ कम्मिंधणा महासत्ता ॥ उप्पन्नविमलनाणा विहुयमला झत्ति सिज्झति ॥ ११॥ यह गाथा तीनवार गुरु कहे । इन गाथायोंका भावार्थ उपधानप्रकरणभावार्थमें लिख दिया है. ॥
तत्त्वनिर्णयप्रासाद
तदपीछे तिसके स्कंधमें मालाप्रक्षेप करनी ॥ पीछे श्राद्धवर्ग आरात्रिक ( आरती ) गीतनृत्यादि बहुत करे. । उपधानवाही श्रावकने तिस दिनमें आचाम्लादि तप करना; यदि पौषधशाला में मालारोपण होवे, तदा संघसहित जिनमंदिरमें जावे, चैत्यवंदना करके फिर पौषधागार में आयकर मंडलीपूजादि करे. ॥ इस उपधानविधिको निशीथ, महानिशीथ,
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