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________________ तत्वनिर्णयप्रासादपूजा करे, तिस दिनमें शुभ तिथि वार नक्षत्र लग्नमें दीक्षाके उचित दिनमें परम युक्तिसें बृहत्स्नात्रविधिसे जिनपूजा करे, माता पिता परिजन साधर्मिकादिकोंको एकहे करे, तदपीछे मालाग्राही कृतउचितवेष कृतधम्मिल उत्तरासंगवाला निजवर्णानुसारसें जिनोपवीत उत्तरीयादिधारी सज करके प्रचुरगंधादि उपकरण अक्षत नालिकेर हाथमें लेके पूर्व वत् समवसरणको तीन प्रदक्षिणा करे. । तदपीछे गुरुके समीपे क्षमाश्रमणपूर्वक कहे ॥ “इच्छाकारेण तुप्मे अम्हं पंचमंगलमहासुअक्खंध इरि आवहिआसुअक्खंधसक्कथ्थयसुअक्खंधचेइअथ्थयसुअक्खंध चउवीसथ्थयसुअक्खंध सुयथ्थयसुअखंध अणुजणावणि वासक्खे करेह"॥ तदपीछे गुरु भी अभिमंत्रित वासक्षेप करे. । फिर श्राद्ध क्षमाश्रमणपूर्वक कहे "चेइआइंच वंदावेह" तदपीछे वर्द्धमानस्तुतियोंसें चैत्यवंदन करना, शांतिदेवादि स्तुतियां पूर्ववत्. फिर शकस्तव अर्हणादि स्तोत्र कहना. पूर्ववत् । तदपीछे ऊठके “ पंचमंगलमहासुअक्खंध पडिक्कमणसुअक्खंध भावारिहंतथ्थय ठवणारिहंतथ्थय चउवीसथ्थय नाणथ्थय सिद्धथ्थय अणुजाणावणि करेमि काउस्सग्गं अन्नथ्थ उससिम्णं-यावत्-अप्पाणं वोसिरामि" कहके चतुर्विंशतिस्तव चिंतन करे, पारके प्रकट चतुर्विशतिस्तव पढे । गुरु तीनवार परमेष्ठिमंत्र पढके निषद्याऊपर बैठ जावे, संघ और परिजनसहित श्राद्धको भो भो देवाणुपिया संपाविअ निययजम्मसाफल्लं॥ तुमए अज्जप्पभिई तिक्कालं जावजीवाए ॥१॥ वंदे अवाइं चेइआई एगग्गसुथिरचित्तेणं ॥ खणभंगुराओ मणुअत्तणाओ इणमेव सारंति ॥२॥ तथ्थ तुमे पुव्वएहे पाणंपि न चेव ताव पायव्वं ॥ नो जाव चेइआइं साहविअ वंदिआ विहिंणा ॥३॥ मज्झण्हे पूणरवि वंदिऊण निअमेण कप्पए भुत्तुं॥ अवरण्हे पुणरवि वादंऊण नअमण सुअणंति ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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