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तत्त्वनिर्णयप्रासादपोरसिचउवीसाए होइ अवद्वहिं दसहिं उववासो॥ विगईचाएहिं तिहिं एगट्ठाणेहि अ चऊहिं ॥ १०॥ आयरणाओ नेअं पुरिमट्टा सोलसेहिं उववासो॥ एगासणगा चउरो अटु य बेकासणा तहय ॥ ११॥ भयवं बहू अ कालो एवं कारतस्स पाणिणो हुज्जा ॥ तो कहवि हुज्ज मरणं नवकारविवजिअस्सावि ॥ १२॥ नवकारवजिओ सो निव्वाणमणुत्तरं कह लभिज्जा ॥ तो पढमं चिअ गिएहओ उवहाणं होओ वा मा वा ॥१३॥ गोअम जं समयं चिअ सुओवयारं करिज जो पाणी तं समयं चिअ जाणसु गहिअवयटुं जिणाणाए ॥१४॥ एवं कयउवहाणो भवंतरे सुलहबोहिओ होज्जा ॥ एअज्झवसाणोविहु गोअम आराहओ भणिओ ॥१५॥ जो उ अकाऊणमिणं गोअम गिहिज भत्तिमंतोवि ॥ सो मणुओ ददव्यो अगिएहमाणोण सारिच्छो ॥१६॥ आसायइ तिथ्थयरं तवृयणं संघगुरुजणं चेव ॥ आसायणबहुलो सो गोयम संसारमणुगामी ॥ १७॥ पढमं चिअ कन्नाहेडएण जं पंचमंगलमहीअं॥ तस्सवि उवहाणपरस्स सुलहिआ बोहि निद्दिट्टा ॥१८॥ इअ उवहाणपहाणं निउणं सयलंपि वंदण विहाणं ॥ जिणपूआपुवं चिअ पढिज सुअभणिअनीईए ॥ १९॥ तं सरवंजणमत्ता बिंदुपयच्छेअठाणपरिसुद्धं ॥ पढिऊणं चिइवंदणसुत्तं अथं वियाणिज्जा ॥ २०॥ तथ्थ य जथ्थेव सिआ संदेहो सुत्तअथ्थविसयंमि ॥ तं बहुसो वीमंसिअ सयलं निस्संकियं कुज्जा ॥२१॥
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