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एकोत्रिंशस्तम्भः। ॥ उजिंतसेलसिहरे दिक्खा नाणं च निसीहिआ जस्स । तं धम्मचकवहिं अरिटुनमिं नमसामि । ४। चत्तारि अष्ट दस दो अवंदिआ जिणवरा चउवीसं। परमट्टनिहिअठ्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसतु ॥५॥” इत्युपधानवाचनास्थितिः॥ अथ विस्तार, निशीथसिद्धांतसे उधृत उपधानप्रकरणसें जानना.। सयथा ॥ पंचनमुक्कारे किल दुवालसतवो उ होइ उवहाणं॥ अट्ट य आयामाइं एगं तह अट्ठमं अंते ॥ १॥ एवंचिय नीसेसं इरियावहिआइ होइ उवहाणं ॥ सकच्छंयंमि अदुममेगं बत्तीस आयामा ॥२॥ अरिहंतचेइअथए उवहाणमिणं तु होइ कायव्वं ॥ एगं चेव चउथ्थं तिन्नि अ आयंबिलाणि तहा ॥३॥ एगंचिय किर छद्रं चउथ्थमेगं तु होइ कायवू ॥ पणवीसं आयामा चउवीसथ्थयम्मि उवहाणं ॥४॥ एगं चेव चउथ्थं पंच य आयंबिलाणि नाणथए । चिइवंदणाइसुत्ते उवहाणमिणं विणिदिटुं ॥५॥ अवावारो विकहा विवजिओ रुद्दझाणपरिमुक्को ॥ विस्सामं अकुणंतो उवहाणं कुणइ उवउत्तो ॥६॥ अह कहवि हुज्ज बालो बुट्टो वा सत्तिवन्जिओ तरुणो ॥ सो उवहाणपमाणं पूरिजा आयसत्तीए ॥७॥ राईभोयणविरई दुविहं तिविहं चउन्विहं वावि ॥ नवकारसहिअमाई पच्चक्खाणं विहेऊणं ॥८॥ एगेए सुद्धआयंबिलेण इयरेहिं दोहिं उववासो॥ नवकारस्सहिएहिं पणयालीसाइं उववासो॥९॥
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