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________________ एकोनत्रिंशस्तम्भः । ॥ अथैकोनत्रिंशस्तम्भारम्भः ॥ अथ एकोनत्रिंशस्तंभमें व्रतारोपसंस्कारांतर्गत श्रुतसामायिकारोपणविधि कहते हैं. ॥ तहां यति ( साधु ) योंको श्रुतसामायिकारोपण, योगोद्वहनविधिकरके होता है. और श्रुतारोपण, आगम पाठसें होता है. और योगोद्रहन आगमपाठ रहित गृहस्थोंको, श्रुतसामायिकारोपण, उपधानोद्वहन करके होता है. और सुधारोपण, परमेष्ठिमंत्र, ईर्यापथिकी, शक्रस्तव, चैत्यस्तव, चतुर्विंशतिस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धस्तवादि पाठकरके होता है. ॥ ૪૬ उपधीयते ज्ञानादि परीक्ष्यते अनेनेत्युपधानं - जिससें ज्ञानादिकी परी - क्षा करिये, तिसको उपधान कहते हैं. अथवा चार प्रकारके संवर समाधिरूप सुखशय्या में उत्तम होनेसें उत्सीर्षक स्थानमें उपधीयते स्थापन करिये, तिसको उपधान कहिये. तिस उपधानमें छ (६) श्रुतस्कंधोंका उपधान होता है, सोही दिखाते हैं. परमेष्ठिमंत्रका १, ईर्यापथिकीका २, शक्रस्तवका ३, अर्हत् चैत्यस्तवका ४, चतुर्विंशतिस्तवका ५ श्रुतस्तवका ६. सिद्धस्तवकी वाचना उपधानविना होवे है. Jain Education International प्रथम परमेष्ठिमंत्र महाश्रुतस्कंध के पांच अध्ययन है, और एक चूलिका है. दो दो पदके आलापक ( आलावे ) पांच है, सात २ अक्षरके अर्हत् आचार्य उपाध्याय नमस्कृति ( नमस्कार) रूप तीन पद है, सिद्धनमस्कृतिरूप दूसरा पद पांच अक्षरोंका है, साधुयांको नमस्काररूप पांचमा पद नव अक्षरोंका है, एवं पांच पद. तिसके पीछे चूलिका, तिसमें दो पदरूप प्रथम आलापक सोलां (१६) अक्षरोंका है, तृतीय पदरूप दूसरा आलापक आठ (८) अक्षरोंका है, और चौथे पदरूप तीसरा आलापक नव (९) अक्षरोंका है. तहां पंचपरमेष्ठिमंत्र में पांचो पदोंमें तीन उद्देशे है, और चूलिकामें भी उद्देशे तीन है, एवं उद्देशे ६ ॥ प्रथमके पांचो पदों में पैंतीस (३५) अक्षर है, और चूलिकामें तेतीस (३३) अक्षर है. ५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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