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________________ ४३४ सत्वनिर्णयप्रासादभावका होना, सो आस्तिक्य । ५। एतावता शम १, संवेग २, निर्वेद ३, अनुकंपा ४, और आस्तिक्य ५, इन पांचों लक्षणोंसें हृदयगत सम्यक्त्व जाणिये हैं. ॥१४॥ सम्यक्त्वस्य पंचभूषणान्याह ॥अथ सम्यक्त्वके पांच भूषण कहते हैं.॥ स्थैर्य-स्थैर्य जिनधर्मकेविषे स्थिरता।१। जिनधर्मकी प्रभावना ।२। जिनधर्ममें भक्ति ।३। जिनशासनमें कुशलता। ४। और तीर्थसेवा। ५। येह पांच सम्यक्त्वके भूषण हैं. ॥१५॥ सम्यक्त्वस्य पंचदूषणान्याह ॥ अथ सम्यक्त्वके पांच दूषण कहते हैं.॥ शंका०-शंका धर्म है, वा नही? इत्यादि संदेह । १। आकांक्षा-अन्य २ धर्मकी अभिलाषा ।२। विचिकित्सा-धर्मके फलका संदेह । ३। मिथ्यादृष्टिकी प्रशंसा । ४। और मिथ्यादृष्टियोंका परिचय । ५। येह पांच सम्यक्त्वों दूषित करते हैं. ॥ १६ ॥ ऐसें पूर्वोक्त उपदेशकरके श्रेणिक, संप्रति, दशार्णभद्रादि सम्यक्त्वमें दृढ राजायोंके चरित्रोंके व्याख्यान करे. । उस दिनमें श्रावक एकभक्त आचाम्लादि तप करे.। साधुयोंको अन्न, वस्त्र, पुस्तक, वसति, यथायोग्य देना.। मंडलीपूजा करनी.। चतुर्विधसंघवात्सल्य करना.। और संघपूजा करनी.॥ इतिव्रतारोपसंस्कारे सम्यक्त्वसामायिकारोपणविधिः॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादे पंचदशवतारोपसंस्कारांतर्गतसम्यक्त्वसामायिकारोपणविधिवर्ण नोनाम सप्तविंशः स्तम्भः ॥२७॥ ॥ अथाष्टाविंशस्तम्भारम्भः॥ अथ अष्टाविंश (२८) स्तंभमें व्रतारोपसंस्कारांतर्गत देशविरतिसामायि कारोपणविधि लिखते हैं ॥ तदाही-सम्यक्त्व सामायिकारोपणानंतर तत्कालही, तिसकी वासनानुसारें, वा मास वर्षादिके अतिक्रम हुए, देश विरतिमासायिक आरोपण करिये हैं.। तहां नंदि, चैत्यवंदन, कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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