SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वनिर्णयप्रासादकायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमो अरिहंताणं' कहके पारे, पारके 'नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कहके थूई पढे। यथा ॥ यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य साधुभिः साध्यते क्रिया॥ सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी॥१॥ पुनरपि ॥ “॥ भुवनदेवताराधनार्थ कोमि काउसग्गं अन्नच्छ उससिएणं-- यावत्-अप्पाणं वोगामि ॥” । कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे ‘नमोअरिहताणं' कहके पारे, पारके 'नमोहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कहके स्तुति पढे । यथा.॥ " ज्ञानादिगुणयुक्तानां नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानां ॥ विदधातु भुवनदेवी शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥ १॥" पुनरपि ॥ “ शासनदेवताराधनाथ करेमि काउसगं अन्नच्छ० " कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमोअरिहंताणं' कहके पारे, पारके 'नमोर्हत्सिद्धा०' कहके स्तुति पढे. यथा.॥ "या पाति शासने जैनं सद्यः प्रत्यूहनाशिनी ॥ साभिप्रेतसमृद्ध्यर्थ भूयाच्छासनदेवता ॥१॥" पुनरपि.॥ " समस्तवैयावृत्त्यकराराधनाथं करोमि काउसम्गं अन्नच्छ० " कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमो अरिहंताणं ' कहके पारे, पारके - नमोर्हत्सिद्धा० ' कहके स्तुति पढे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy