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________________ सप्तविंशस्तम्भः। यथा॥ " श्रीमते शांतिनाथाय नमः शांतिविधायिने ॥ त्रैलोक्यस्यामराधीशमुकुटाभ्यर्चितांघ्रये ॥ १॥" अथवा ॥ " शांतिः शांतिकरः श्रीमान् शांतिं दिशतु मे गुरुः ॥ शांतिरेव सदा तेषां येषां शांतिम्हे गृहे ॥ १ ॥” पीछे “॥श्रुतदेवतारापनार्थ कमि काउसग्गं अन्नच्छ उससिएणं--यावत्अप्पाणं वोसिरामि॥” कायोत्सर्गमें एक नवकार चिंतन करे. पीछे 'नमो अरिहंताणं' कहके पारे, पारके 'नमोहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' ऐसा कहके स्तुति (थूइ ) पढे । यथा ॥ “॥ मुअदेवया भगवई नाणावरणीयकम्मसंघायं ॥ तेसिंखवउ सययं जेसिं सुयसायरे भत्ती॥१॥" अथवा ॥ " श्वसितसुरभिग्रंधालब्ध गी कुरंग मुखशशिनमजस्रं बिभ्रति या विभर्ति॥विकचकमलमुवैः सास्त्वचिंत्यप्रभावासकलसुखविधात्री प्राणभाजां श्रुतांगी ॥ १॥" पुनरपि ॥ " ॥ क्षेत्रदेवताराधनार्थ करेनि काउसग्गं अन्नच्छ उससिएणंयावत्--अप्पाणं वोसिरामि ॥” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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