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________________ तत्वनिर्णयप्रासादगोत्र, प्रवर, ज्ञाति, और अन्वयको प्रकाश करे. । तदपीछे कन्याके पक्षीय, अपने गोत्र, प्रवर, ज्ञाति, अन्वयको प्रकाश करे. । फिर कन्याकी माताके पक्षीय, गोत्र, प्रवर, ज्ञाति, अन्वयको प्रकाश करे। तदपीछे गृह्यगुरु.॥ “॥ॐ अर्ह अमुकगोत्रीयः इयत्प्रवरः अमुकज्ञातिः अमुकान्वयः अमुकप्रपौत्रः अमुकपौत्रः अमुकपुत्रः अमुकगोत्रीयः इयत्प्रवरः अमुकज्ञातीयः अमुकान्वयःअमुकप्रदौहित्रःअमुकदौहित्रः अमुकःसर्ववरगुणान्वितो वरयिता अमुकगोत्रीया इयत्प्रवरा अमुकज्ञातीया अमुकान्वया अमुकप्रपौत्री अमुकपौत्री अमुकपुत्री अमुकगोत्रीया इयत्प्रवरा अमुक ज्ञातीया अमुकान्वया अमुकप्रदौहित्री अमुकदौहित्री अमुका वा तदेतयोर्व-वरयोर्वरवर्ययोनिविडोविवाहसंबंधोस्तु शांतिरस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु धृतिरस्तु बुद्धिरस्तु धनसंतानटद्धिरस्तु अर्ह ॐ॥” ऐसें कहे. ॥ तदपीछे गृह्यगुरु, वरवधूके पाससे गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य करके अग्निकी पूजा करवावे. । पीछे वधू लाजांजलिको अग्निमें निक्षेप करे. । तदपीछे फिर तैसेंही दक्षिण पासे वधू, और वामे पासे वर बैठे. । पीछे गृह्यगुरु वेदमंत्र पढे. “॥ॐ अर्ह अनादिविश्वमनादिरात्मा अनादिकालः अनादिकर्म अनादिसंबंधो देहिनां देहानुमतानुगतानां क्रोधाहंकारछद्मलोभैः संज्वलनप्रत्याख्यानावरणाप्रत्याख्यानानंतानुबंधिभिः शब्दरूपरसगंधस्पर्शरिच्छानिच्छापरिसंकलितैः संबंधोनुबंधः प्रतिबंधः संयोगः सुगमः सुकृतः स्वनुष्ठितः सुनिटत्तः सुप्राप्तः सुलब्धो द्रव्यभावविशेषण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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