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तत्त्वनिर्णयप्रासाद__ समयांतरमें, देशांतरमें वा कुलांतरमें, वेयंतरमेंही, हस्तलेपन करते हैं. देश कुलाचारादिमें मधुपर्क प्राशनके अनंतर, वेदि; और हस्तलेपसें पहिले परस्पर कंबायुद्ध, वधूवरास्फालन, वेडानयन, मणिग्रथन, स्नान, भ्राष्टकर्म, पर्याणकर्म, वस्त्रकोसुंभसूत्रांतःकर्षणप्रमुख, कर्म करते हैं. वे देशविशेषलोकोंसें जाण लेने. व्यवहार शास्त्रोंमें नही कहे हैं. परंतु स्त्रीयोंको सौभाग्यप्राप्तिवास्ते, शौक आदि न होवे तिसके वास्ते, वरको वशीभूत करनेकेवास्ते करते हैं. ॥
तदपीछे युक्त हाथवाले, नारी और नरकी कटीउपर चढे हुए वधूवर दोनोंको, गीतवाजंत्रादि बहुत आडंबरसें दक्षिण द्वारसें प्रवेश कराके वेदिके मध्यमें लावे.। तदपीछे देशकुलाचारसे काष्ठासनोंके ऊपर, वा वेत्रासनोंके ऊपर, वा सिंहासनके ऊपर, वा अधोमुखी शरमय खारीके ऊपर, वधूवरको पूर्वसन्मुख बिठलावे. । तथा हस्तलेपमें, और वेदिकर्ममें कुलाचारके अनुसार दसियां सहित कौरवस्त्र, वा कौसुंभवस्त्र, वा स्वभाववस्त्र घधूवरको पहिशवे हैं. । तदपीछे गृह्यगुरु, उत्तरसन्मुख मृगचर्म ऊपर बैठाहुआ, शमी, पिप्पल, कपित्थ (कवठ-कएतवेल) कुटज (कुडची-जिस वृक्षका फल इंन्यव होता है), बिल्व, आमलकके इंधनकरके आग्निको जगाके, इस मंत्रकरके घृत मधु तिल यव नाना फलोंका हवन करे ॥ मंत्रो यथा ॥ "॥ॐ अर्ह अग्ने प्रसन्नःसावधानो भव तवायमवसरः तदाहारयेंद्रं यमं नैर्ऋतं वरुणं वायुं कुबेरमीशानं नागान् ब्रह्माणं लोकपालान ग्रहांश्च सूर्यशशिकुजसौस्यबृहस्पतिकविशनिराहुकेतून सुरांश्चासुरनागसुपर्णविद्युदग्निहीपोदधिदिक्कुमारान् भुवनपतीन् पिशाचभूतयक्षराक्षसकिन्नरकिंपुरुषमहोरगगंधर्वान् व्यंतरान् चंद्रार्कग्रहनक्षत्रतारकान् ज्योतिष्कान् सौधर्मेशान् * सनत्कुमारमाहेंद्रब्रह्मलांतकशुक्रसहस्रारा* प्रत्यंतरे 'श्रीवत्सासंडलपद्मोत्तरब्रह्मोत्तर ' इत्यधिकपाठो दृश्यते,
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