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तत्त्वनिर्णयप्रासाद हैं। तदपीछे वधुवरको मातृघरमें बैठे हुए, कन्याके पक्षी, वेदिकी रचना करें; तिसका विधि यह है. ॥ कितनेक काष्ठस्तंभ काष्ठाच्छादनोंकरके चौकूणी वेदी करते हैं; और कितनेक चारों कूणोंमें स्वर्ण, रूप्य, ताम्र, वा माटीके सात सात कलशोंको ऊपर लघु लघु, अर्थात् प्रथम बडा उसके ऊपर छोटा, उसके ऊपर फिर छोटा, एवं स्थापन करके चारों पासे चार चार आई वांसोंसें बांधके वेदि करते हैं. चारों बारणोंमें वस्त्रमय, वा काष्ठमय तोरण, और वंदनमालिका बांधते हैं; और अंदर त्रिकोण अग्निका कुंड करते हैं.। वेदी बनाया पीछे गृह्यगुरु, पूर्वोक्त वेष धारण करके वेदिकी प्रतिष्ठा करे.। तिसका विधि यह है. ॥
१ ऋत्विजो वृत्वा मधुपर्कमाहरेत् ।१-२४-११॥ २स्नातकयोपस्थिताय ।१।२४॥२॥३राज्ञेच ।१।२४।३॥ ४आचार्यश्वशुरपितृव्यमातुलानां च ।१।२४॥ ४॥५ आचांतोदकाय गां वेदयन्ते। १॥२४॥२३॥ ६ हतो मे पाप्मापाप्मामे हत । इति जपित्वोंकुरुतेति कारयिष्यन् ।।२४।२४॥ [ नारायणवृत्ति-इमं मंत्रं जपित्वा ओम् कुरुतेति ब्रूयात् यदि कारयिष्यन् मारयिष्यन् भवति तदा च दाता आलभेत् ] ७ नामांसो मधुपर्को भवति ।। श२४।२६ ॥ [ नारायणवृत्ति-मधुपर्कागभोजनं अमांसं न भवतीत्यर्थः पशुकरणपक्षे तन्मांसेन भोजनं उत्सर्जनपक्षे मांसांतरेण ]-अर्थः ॥ यज्ञ करनेवास्ते प्रत्विज खडा करते वखत तिसको मधुपर्क देना चाहिये । इसीतरें विवाहवास्तै जो वर घरमें आवे तिसको, और राजा घरमें आवे तिसको मधुपर्क देना चाहिये । आचार्य, गुरु, श्वशूर, चाचा, मामा, येह घरमें आवे तो तिनको भी मधुपर्क देना चाहिये । मुख साफ करनेवास्ते पाणी देकर तिसके आगे गाय खडी रखनी चाहिये । सूत्रमें लिखा मंत्र पढके ओम् कहके घरके स्वामिने गौका वध करना । मधुपर्कागभोजन, विनामांसके नही होता है, इसवास्ते पशुके वधपूर्वक मधुपर्क करा होवे तो, तिसही पशुका मांस भोजनके काममें आवे, और पशुको छोड दीया होवे तो, और मांससे भोजन कराना चाहिये.॥ ___ तथा मणिलाल नभूभाइ द्विवेदी सिद्धांतसारमें लिखते हैं ॥ “ विवाहके संबंध मधुपर्ककी बात कहनेजोग है. ऐसा धर्माचार है कि आये हुए अतिथिकेवास्ते मधुपर्क करना चाहिये.. बर भी अतिथिही है. असल जैसें यज्ञकेवास्ते गोवध विहित था, तैसें मधुपर्कवास्ते भी गौका वा बैलका वध विहित था. मांसविना मधुपर्क नहीं ऐसें आश्वलायन कहता है; और नाटकादिकोंसें मालुम होता है, कि अच्छे महर्षियोवास्ते भी, मधुपर्कमें गोवध किया है. आश्चर्यकी बात है, कि जो गौ आज बहुत पवित्र गिणी जाती है, तिसको प्राचीन समयमें यज्ञकेवास्ते तथा मधुपर्ककेवास्ते मारनेका रीवाज था ? हाल तो मधुपर्कमें फक्त दधि मधु और घृत येही वापरते हैं.”—जैसें अनार्य वेदोंमें हिंसक क्रिया कथन करी है, तैसें आर्य वेदोंमें नही है । और मधुपर्कमें तथा यज्ञमें प्रायः जीववध बंध हुआ है सो भी जैन, बौद्ध, वैष्णवादि संप्रदायोंके जोर (बल) का प्रताप है. मणिलाल नभुभाइ सिद्धांतसारमें लिखते हैं ॥ " पाटण, खंभात, जैसलमेर, जेपुर भादि स्थलोंके जैनभंडार गजों पुस्तकोंसें भरपूर हैं, और विद्याके खरे भंडाररूप हैं. इसतरे छ
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