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________________ . षड्विंशस्तम्भः सरावसंपुटको, वरको निरंछन करके, प्रवेशमार्गके वामे पासे स्थापन करे. । तदपीछे अन्य स्त्री कौसुंभसूत्रसे अलंकृत, मंथानको लाके, तिसकरके तीन वार वरके ललाटको स्पर्श करे. । पीछे वर, वाहनसे नीचे उतरके, वामे पग करी तिस अग्निलवणगर्भसंपुटको खंडित करे (तोडे).। पीछे वरकी सासु, वा कन्याकी मामी, वा कन्याका मामा, कौसुंभवस्त्रको वरके कंठमें डालके, खेंचता हुआ वरको मातृघरमें ले जावे. तहां विभूषाकरके, कौतुकमंगलकरके, प्रथम आसनऊपर बैठी हुई कन्याके वामे पासे, मातृदेवीके सन्मुख, वरको बिठलावे. । तदपीछे गृह्यगुरु लग्नवेलामें शुभांशके हुए, पीसी हुई समी (खेजडी) की छाल, और पीपकी छाल, चंदनद्रव्यमिश्रितकरके, तिससे लीपे हुए, वधूवरके दोनों दक्षिण हाथ जोडे । उपर कौसुंभसूत्रसें बांधे.॥ हस्तबंधनमंत्रः॥ " ॥ॐ अर्ह आत्मासि जीवोसि समकालोसि समचितोसि समकासि समाश्रयोसि समदेहोसि समक्रियोसि समस्नेहोसि समचेष्टितोसि समाभिलाषोसि समेच्छोसि समप्रमोदोसि समविषादोसि समावस्थोसि समनिमित्तोसि समवचाअसि समक्षुत्तृष्णोसि समगमोसि समागमोसि समविहारोसिसमविषयोसि समशब्दोसि समरूपोसि समगंधोसि समस्पर्शोसि समेंद्रियोसि समाश्रवोसि समबंधोसि समसंवरोसि समनिर्जरोसि सममोक्षोसि तदेह्येकत्वमिदानी अहँ ॐ॥” इति हस्तबंधनमंत्रः॥ यहां समयांतरमें वैदिक मतमें मधुपर्क * भक्षण, देशांतरमें वरको दो गौयां देनी, और कुलांतरमें कन्याको आभरण पहिरावणे, इत्यादि करते .*ऋग्वेदके आश्वलायनसूत्रके दूसरे हिस्से गृह्यसूत्रके प्रथम अध्यायकी चौवीसमी कंडिकामें मधुपर्कका विधि लिखा है, तिसके सूत्र नीचे प्रमाणे हैं. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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