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षडविंशस्तम्भः ।
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देशाचार कुलाचार विशेषसें करना । तदपीछे जेकर, वर, अन्य ग्रामांतर, नगरांतर, वा देशांतरमें होवे तो, तिसकी गमनयात्रा * कन्याके निवासस्थानप्रति करनी; तिसका विधि यह है. ॥
प्रथम एक दिनमें मातृपूजापूर्वक सर्व लोकोंको भोजन देना; पीछे दूसरे दिन सुनात होके, चंदनका लेपन करके, वस्त्रगंधमाल्यादिकरके अलंकृत होके, मुकुटकरके भूषित शिरको करके, घोडेपर, वा हाथीपर, वा पालखीमें आरूढ होके वर चले । तिसके समीप, अच्छे वस्त्रोंवाले, प्रमोदसहित, पानबीडे चावे हुए, संबंधी ज्ञातिजन, अपनी २ संपदानुसार घोडेआदि ऊपर चढे हुए, वा पगोंसें चलते हुए, वरकेसाथ चलें. । दोनों पासे, मंगलगान में प्रसक्त ऐसी ज्ञातिकी नारीयां चलें और आगे ब्राह्मणलोक, गृह्यशांतिमंत्र पढते हुए चलें. ॥
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स यथा ॥
“||ॐ अर्ह आदिमोहन आदिमो नृपः आदिमो यंता आदिमो नियंता आदिमो गुरुः आदिमः स्रष्टा आदिमः कर्ता आदिमो भर्ता आदिमो जयी आदिमो नयी आदिमः शिल्पी आदिमो विद्वान् आदिमो जल्पकः आदिमः शास्ता आदिमो रौद्रः आदिमः सौम्यः आदिमः काम्यः आदिमः शरण्यः आदिम दाता आदिमो वंद्यः आदिमः स्तुत्यः आदिमो ज्ञेयः आदिमो ध्येयः आदिमो भोक्ता आदिमः सोढा आदिम एकः आदिमोऽनेकः आदिमः स्थूलः आदिमः कर्म्मवान् आदिमोऽकर्मा आदिमो धर्म्मवित् आदिमोऽनुष्ठेयः आदिमोऽनुष्ठाता आदिमः सहजः आदिमो दशावान् आदिमः सकलत्रः आदिमो निःकलनः आदिमो विवोढा आदिमः ख्यापकः आदिमो ज्ञापकः आदिमो विदुरः आ
जान-जनेत - नरातइतिलोकप्रसिद्ध. ॥
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