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तत्त्वनिर्णयप्रासाद येह तीन विवाह दुःखमकालकलियुगमें प्रवर्त्तते नहीं हैं. । * चारों पापविवाहोंका वेदोक्तविधि भी नही है. अधर्म होनेसें.॥ ___ संप्रति वर्तमान प्राजापत्य विवाहका विधि कहते हैं ॥ मूल, अनुराधा, रोहिणी, मघा, मृगशिर, हस्त, रेवती, उत्तरा ३, स्वाति, इन नक्षत्रों में करग्रहण करना.। वेध, एकार्गल, लत्ता, पात, उपग्रहसंयुक्त नक्षत्रों में विवाह नहीं करना. । तथा युतिमें, और क्रांति साम्य दोषमें भी नही करना.। तीन दिनको स्पर्शनेवाली तिथिमें, अवम् (क्षय ) तिथिमें, क्रूर तिथिमें, दग्ध तिथिमें, रिक्ता तिथिमें, अमावास्या, अष्टमी, षष्ठी, द्वादशी इनमें विवाह नहीं करना.।भद्रामें, गंडांतमें, दुष्टनक्षत्र तिथि वार योगोंमें, व्यतिपातमें, वैधृतिमें और निंद्य वेलामें, विवाह नही करना. । सूर्यके क्षेत्रमें बृहस्पति होवे, और बृहस्पतिके क्षेत्रमें सूर्य होवे तो, दीक्षा, प्रतिष्ठा, विवाह प्रमुख वर्जने । चौमासेमें, अधिमासमें, गुरु शुक्रके अस्त हुए, मलमासमें, और जन्ममासमें, विवाहादि न करना. । मासांतमें, संक्रांतिमें, संक्रांतिके दूसरे दिनमें, ग्रहणादि सात दिनोंमें भी, पूर्वोक्त कार्य नहीं करना.। जन्मके तिथि, वार, नक्षत्र, लग्नमें; राशि और जन्मके ईश्वरके अस्त हुए.
और क्रूर ग्रहोंकरके हत हुए भी, विवाह नही करणा. । जन्मराशिमें, जन्मराशि और जन्मलग्नसें वारमें और आठमेमें, और लग्नके अंशके अधिपके छठे, और आठमे घरमें गए हुए, लग्न नही करना.। स्थिर लग्नमें, वा द्विस्वभावलग्नमें, वा सद्गुण करी संयुक्त चर लममें, उदया. स्तके विशुद्ध हुए, विवाह करना. परंतु उत्पातादिकरके विदूषितमें नही करना. । लग्न और सप्तम घर, ग्रहकरके वर्जित होवे; तीसरे, छठे, और इग्यारमे घरमें, रवि, मंगल और शनि होवे. । छठे और तीसरे घरमें तथा पापग्रहवर्जित पांचमें घरमें राहु होवे; लग्नमें तथा पांचमे चौथे, दशमे, और नवमे घरमें, बृहस्पति होवे. । ऐसेंही शुक्र, बुध, होवे; लग्न, छठे, आठमे, वारमे घरसें, अन्यत्र चंद्रमा होवे, सो भी पूर्ण होवे. । क्रूरकरके दृष्ट, और क्रूरसंयुक्त चंद्र वर्जना; क्रूर, और अंतरस्थ लम और चंद्र वर्जने । इत्यादि गुणसंयुक्त, दोष विवर्जित लग्नमें, शुभ
* गोमेधनरमेधाद्या यज्ञाः पाणिग्रहत्रय ॥ सुताश्च गोत्रजगुरोर्न भवंति कलौ युगे॥ इतिवचनात् ।।
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