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तत्त्वनिर्णयप्रासादकुशाके आसनउपर आप बैठके, शिष्यको वामेपासे कुशासनोपरि बिठलाके तिसके दक्षिण कानको पूजके तीनवार सारस्वत मंत्र पढे. पीछे गुरु, अपने घरमें वा अन्य उपाध्यायकी शालामें, वा पौषधागारमें, शिष्यको पालखी, वा घोडेपर चढायके मंगलगीतोंके गाते हुए, दान देते हुए, वाजंत्र वाजते हुए, यति गुरुकेपास लेजाके मंडलीपूजापूर्वक वासक्षेप करवाके, पाठशालामें लेजावे. पीछे गुरु शिष्यको आगे बिठलाके येह शिक्षाश्लोक पढे।
यथा॥ अज्ञानतिमिरांधानां ज्ञानांजनशलाकया ॥ नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥ यासां प्रसादादधिगम्य सम्यक् शास्त्राणि विदन्ति परंपदं ज्ञाः॥ मनीषितार्थप्रतिपादकाभ्यो नमोस्तु तान्यो गुरुपादुकाभ्यः॥२॥ सत्येतस्मिन्नरतिरतिदं गृह्यते वस्तु दूरा
दप्यासन्नेप्यसति तु मनस्याप्यते नैव किंचित् ॥ पुंसामित्यप्यवगतवतामुन्मनीभावहेता
विच्छा बाढं भवति न कथं सद्गुरूपासनायाम् ॥ ३ ॥ इति मत्वा त्वया वत्स त्रिशुद्ध्योपासनं गुरोः ॥ विधेयं येन जायंते गोधीकीर्तिधृतिश्रियः ॥४॥
ऐसें शिष्यको शिक्षा देके, और तिससे स्वर्ण वस्त्र दक्षिणा लेके, गुरु अपने घरको जावे. पीछे उपाध्याय, सर्वको पहिले मातृका पढावे; पीछे विप्रको प्रथम आर्यवेद पढावे, पीछे षडंगी, पीछे पुराणादि धर्मशास्त्र पढावे; क्षत्रियको भी ऐसेंही चतुर्दश विद्या पढावे. पीछे आयुर्वेद, धनुर्वेद, दंडनीति और आजीविकाशास्त्र पढावे. वैश्यको धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, कामशास्त्र और अर्थशास्त्र पढावे. शूद्रको नीतिशास्त्र और आजीविकाशास्त्र पढाबेकारुयोंको तिनके उचित विज्ञानशास्त्र पढावे. पीछे साधुयोंको चतुर्विध
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