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तत्त्वनिर्णयप्रासादगुरुत्यागे भवेदुःखं मंत्रवत्यागे दरिद्रता ॥ गुरुमंत्रपरित्यागे सिद्धोऽपि नरकं व्रजेत् ॥ १३ ॥ इति ज्ञात्वा सुगृहीतं कुर्या मंत्रममुं सदा ॥
सेत्स्यति सर्वकार्याणि तवास्मान्मंत्रतो ध्रुवम् ॥ १४ ॥ गुरुने ऐसे शिक्षा दिया हुआ उपनेय तीन प्रदक्षिणा करके “नमोस्तु २" ऐसें कहता हुआ, गुरुको नमस्कार करे. पीछे गुरुको वर्णका जिनोपवीत, श्वेत वस्त्र रेशमी, और स्वर्णमौंजी स्वसंपदानुसारें देवे. और सर्वसंघको भी तांबूल वस्त्रादि देवे.॥ इत्युपनयने व्रतबंधविधिः ॥
अथ व्रतादेशविधि लिखते हैं. ॥ तिसही अवसरमें, तिसही संघके संगममें, तिसही गीतवाजंत्रादि उत्सवमें, तिसही वेदचतुष्किकामें, प्रतिमास्थापन संयोगमें, बतादेशका आरंभ करे. तिसका यह क्रम है. । गृह्यगुरु, उपनीत पुरुषके कार्पास रेशमी अंतरीय उत्तरीय वस्त्र दूर करके मौंजी जिनोपवीत कौपीन येह वस्तुयों तिसकी देहमें तैसेंही स्थापके, तिसके ऊपर कृष्णसाराजिन (कालामृगचर्म) वा, वृक्षके वल्कलका वस्त्र पहिरावे. । हाथमें पलाशका दंडा देवे. और इस मंत्रको पढे.
“॥ ॐ अहं ब्रह्मचार्यसि । ब्रह्मचारिवेषोऽसि अवधिनह्मचर्योंसि।धृतब्रह्मचयोंसि । धृताजिनदंडोसि ।बुद्धोऽसि। प्रबुद्धोऽसि।धृतसम्यक्त्वोऽसि।दृढसम्यक्त्वोसि।पुमानसि। सर्वपूज्योऽसि । तदवधिब्रह्मव्रतं आगुरुनिदेशं धारयेः अहं ॐ ॥” ऐसें पढके व्याघ्रचर्ममय आसनके ऊपर, वा कल्पित काष्ठमय आस नके उपर उपनीतकों बिठलावे. तिसके दक्षिण हाथकी प्रदेशिनी अंगु. लीमें दर्भसहित कांचनमयी षोडश १६ मासे प्रमाण (पांच गुंजाका एक मासा जाणना) पवित्रिका मुद्रा पहरावे. ।
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