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तत्वनिर्णयप्रासादत्रिकोण ५ । ९, इन गृहोंमें असरह होवे तो, मृत्यु हुए भी क्षुरक्रिया सुंदर नहीं होवे; और इनही घरोंमें शुभ ग्रह होवे तो क्षुरक्रिया पुष्टिकी करणहार जाणनी. । तिसवास्ते बालकको सूर्यबलयुक्त मासके हुए, चंद्रताराबलयुक्त दिनमें, पूर्वोक्त तिथिवारनक्षत्रमें कुलाचारानुसार कुलदेवताकी प्रतिमाके पास अन्य ग्राममें, वनमें, पर्वतके ऊपर, वा घरमें शास्त्रोक्त रीतिसें प्रथम पौष्टिक करे । तदपीछे षष्ठीपूजार्जित मात्रष्टपूजा पूर्ववत् । तदपीछे कुलाचारानुसार नैवेद्य देवपक्वान्नादि करणा. । तदपीछे सुनात गृहस्थगुरु बालकको आसनऊपर बैठाके बृहत्स्नात्रविधिकृत जिनस्नात्रोदकसे शांतिदेवीके मंत्रकरके सिंचन करे. । तदपीछे कुलक्रमागत नापित (नाइ) के हाथसें मुंडन करवावे.। तीन वर्णके शिरके मध्यभागमें शिखा स्थापन करा और शूद्रको सर्वमुंडन. । चूडाकरण करते हुए यह वेदमंत्र पढे.॥
यथा॥ “॥ ॐ अर्ह ध्रुवमायुर्बुवमारोग्यं ध्रुवाः श्रीयो ध्रुवं कुलं ध्रवं यशोध्रवं तेजो ध्रुवं कर्म ध्रुवा च गुणसंततिरस्तु अहँ ॐ॥"
यह सातवार पढता हुआ बालकको तीर्थोदककरके सींचे.। गीत वा. जंत्र सर्वत्र जाणने । तदपीछे पंचपरमेष्ठिपाठपूर्वक बालकको आसनसें उठायकर स्नान करावे. । चंदनादिकरके लेपन करे. । श्वेतवस्त्र पहिनावे. । भूषणोंकरके भूषित करे.। तदनंतर धर्मागारमें लेजावे.। तदपीछे पूर्वरीतिसें मंडलीपूजा गुरुवंदना वासक्षेपादि. । तदपीछे साधुयोंको शुद्ध वस्त्र, अन्न, पात्र और षड्रस विकृति दान देवे. । गृह्यगुरुको वस्त्र स्वर्ण दान देवे.। नापितको वस्त्र कंकण दान देवे. ॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धचूडाकरणसंस्कारकीर्तननामैकादशोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिकृतो बालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तोयं त्रयोविंशस्तम्भः॥११॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे एका
दशचूडाकरणसंस्कारवर्णनो नाम त्रयोविंशस्तम्भः॥२३॥
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