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________________ अष्टादशस्तम्भः। तदपीछे गुरु हस्तमें पुष्प लेके ॥ . “॥ॐ ऐं ही षष्ठि । आम्रवनासीने । कदंबवनविहारे। पुत्रद्वययुते । नरवाहने। श्यामाङि । इह आगच्छ २ स्वाहा ॥" मातृवत् इसकी भी पूजा करणी.। तदपीछे बालकमातासहित अविधवा कुलवृद्धा स्त्रीयां मंगलगीतगानमें तत्पर वाजंत्रोंके वाजते हुए षष्ठीरात्रिको जागरणा करे. । तदपीछे प्रातःकालमें॥ “॥ ॐ भगवति माहेश्वरि पुनरागमनाय स्वाहा ॥” ऐसें प्रत्येक नामपूर्वक गुरु, मातृको और षष्ठीको विसर्जन करे । तदपीछे गुरु, बालकको पंचपरमेष्ठिमंत्रपवित्रित जलकरके अभिषेक करता हुआ, वेदमंत्रकरके आशीर्वाद देवे.॥ यथा ॥ ॐ अहं जीवोऽसि । अनादिरसि। अनादिकर्मभागसि । यत्त्वया पूर्व प्रकृतिस्थितिरसप्रदेशैराश्रववृत्त्या कर्मबद्धं तबन्धोदयोदीरणासत्ताभिः प्रतिभुव।मा शुभकर्मोदयफलभुक्तेरुच्छेकं दध्याः। नचाशुभकर्मफलभुक्त्या विषादमाचरेः। तवास्तु संवरवृत्त्या कर्मनिर्जरा अहंॐ॥" सूतकमें दक्षिणा नही है.॥चंदन, दधि, दूर्वा, अक्षत, कुंकुम, लेखिनी, हिंगुलादिवर्ण, पूजाके उपकरण, नैवेद्य, सधवा स्त्रीयां, दर्भ, भूमिलेपन, इतनी वस्तुयां षष्ठीजागरणसंस्कारमें चाहिये. ॥ इत्याचार्यवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धषष्ठीजागरणसंस्कारकीर्तननामषष्ठोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयान्दसूरिकृतो बालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समातोयमष्टादशस्तम्भः ॥ ६॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयान्दसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रन्थे षष्ठी जागरणनामषष्ठसंस्कारवर्णनो नामाष्टादशस्तम्भः ॥ १८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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