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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासादडुकरे। गरुडवाहने । कृष्णवर्णे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥" शेषं पूर्ववत् ॥ ४॥ “॥ॐ हीं नमो भगवति। वाराहि । वराहमुहि । चक्रखडहस्ते। शेषवाहने। श्यामवर्णे । इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥" शेषं पूर्ववत् ॥ ५॥ “॥ ॐ ही नमो भगवति ।इंद्राणि। सहस्रनयने। वज्रहस्ते। सर्वाभरणभूषिते। गजवाहने। सुरांगनाकोटिवेष्टिते।कांचनवणे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥” शेषं पूर्ववत् ॥६॥ “॥ ॐ ही नमो भगवति । चामुंडे । शिराजालकरालशरीरे। प्रकटितदशने।ज्वालाकुंतले। रक्तत्रिनेत्रे।शलकपालखडप्रेतकेशकरे।प्रेतवाहने।धूसरवणे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ२॥" शेष पूर्ववत् ॥ ७॥ “॥ॐही नमो भगवति। त्रिपुरे। पद्मपुस्तकवरदाभयकरे । सिंहवाहने । श्वेतवर्णे । इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥" शेषं पूर्ववत् ॥ ८॥ एवं जैसे उर्ध्व (खडी) मातृयांका पूजन करे, तैसेंही बैठी और सुप्त मातृयांका भी पूर्वोक्त मंत्रोंसेंही तीनवार पूजन करे; । कितनेक चामुंडा, त्रिपुरा, दोनोंको वर्जके षट्मातृकाही पूजन करते हैं.॥ मातृका पूजन करके ऐसें पढे. ॥ ब्रह्माद्यामातरोप्यष्टौ स्वस्वास्त्रबलवाहनाः॥ षष्ठीसंपूजनात्पूर्व कल्याणं ददता शिशोः ॥ १॥ तदपीछे मातृस्थापनाकी अग्रभूमिमें चंदनलेपस्थापना करके, अंबारूप षष्ठीको स्थापन करे । और तिस स्थापनाको दाध, चंदन, अक्षत, दुर्वादिकरके पूजे.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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