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द्वादशस्तम्भः कहते हैं. और ऋग्, यजुः, साम, अथर्व, ये नाम भी व्यासजीनेही रक्खे हैं; ऐसा कथन महीधरकृत यजुर्वेदभाष्यमें लिखा है.
जब वेदका एक पुस्तकही रावणके समयमें नही था तो, तिसऊपर रावणने भाष्य रचा किसतरे माना जावे ? जेकर किसी ब्राह्मणका नाम रावण होवे, और तिसने वेदोंपर भाष्य रचा होवे, यह तो मान भी सकते हैं. परंतु वो भाष्य कब रचा गया ? और कहां गया? क्यों कि, सायणाचार्यने ऋग्वेदके भाष्य रचते हुएने, यह नही लिखा है कि, मैं अमुक भाष्यके अनुसारे नवीन भाष्य रचता हूं; जैसे महीधरने वेददीपमें लिखा है कि मैं माधव उव्हटादिके भाष्यानुसार रचना करता हूं.। या तो सायणाचार्यकों प्राचीन कोइ भाष्य नहीं मिला होवेगा। और जे कर मिला होवेगा तो तिसके अर्थ सायणाचार्यको सम्मत नही होवेंगे, इसवास्ते अपने मतानुसार नवीन भाष्य रचके प्राचीन भाष्य लोप करदिया होवेगा; इसवास्ते ही वेदवेदांतके पुस्तकोंके भाष्यमें बहुत गडबड है. कोइ किसीतरेंके अर्थ करता है, और कोइ उससे अन्यतरेंके, कोइ उससे भी अन्यतरेंके; जैसें व्याससूत्रोपरि आठ आचार्योंने आठ तरके भाष्योंमें अन्य २ प्रकारके अर्थ लिखे हैं.। शंकर १, आनंदतीर्थ २, निंबार्क ३, भास्कर ४, रामानुज ५, शैवमतप्रवर्तक ६, वल्लभ ७, भिक्षु ८.। इनके रचे भाष्यके मत यथाक्रमसें जान लेने। केवलाद्वैत १, द्वैत २, द्वैताद्वैत ३, द्वैताद्वैत ४, विशिष्टाद्वैत ५, विशिष्टाद्वैत ६, शुद्धाद्वैत ७, अविभागाद्वैत ८.॥ इसवास्ते वेदवेदांतके पुस्तकोंके प्राचीन भाष्य, और टीका नहीं मालुम होते हैं;। इसवास्ते सर्व भाष्यकारादिकोंने अपने २ मतानुसार अपनी २ अटकलपच्चीसें अर्थ लिखे हैं. मीमांसाके वार्तिककार कुमारिलभवत्. आधुनिक भाष्यकर्ता स्वामिदयानंदसरखतीवञ्च । इसवास्ते इन सर्व ग्रंथोंसे प्रमाणिक अर्थ नही सिद्ध होता है.
और माधवाचार्य अपने रचे शंकरदिग्विजयमें लिखते हैं कि, शंकरा. चार्यकों व्यासजी साक्षात् मिले, तब उनोने व्यासजीसे कहा कि, मेरे रचे अर्थ कैसे हैं ? तब व्यासजीने कहा कि, तेरे अर्थ सर्व प्रमाणिक
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