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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद 6 कर है । तथा ' प्रचोदया ' प्रदीयमान विषका असाध्य निदान है इत्यादि ॥ 'अधीमहि ' अकारसें अजा मेषशृंगी ( मेषके श्रृंगसमान फलवाला वृक्ष ) तिसके ' प्रचोदयात् ' दकारसें दल ( पत्र ) | भा १ । 'भर्गोदेव' गोशब्दसें गेंहू सन्तु । भा १ । 'महि' मकारसें मधुलि । भा २ । ' सवितुः ' सकारखें सर्पिषा सह - घृतके साथ भर्गो' भशब्द भक्षण करे ' वरेण्यं' बकार बलवीर्य करे ' प्रचोद ' प्रसें प्रभंजन (वायु) तिसकों हरे, इलादि औषध विधियां भी इहां जाननीयां ॥ C आर्यावृत्तम् ॥ चक्रे श्रीशुभतिलकोपाध्यायैः स्वमतिशिल्प कल्पनया ॥ व्याख्यानं गायत्र्याः क्रीडामात्रोपयोगमिदम् ॥ १ ॥ अनुष्टुप् ॥ तस्यायं स्तबकार्थस्तु परोपकृतिहेतवे ॥ कृतःपरोपकारिभिर्विजयानंदसूरिभिः ॥ १ ॥ ॥ इतिगायत्रीमंत्रव्याख्यास्तवकार्थः ॥ श्रीशुभतिलक उपाध्यायजी अपने करे गायत्रीव्याख्यानमें कहते हैं कि, मैने येह पूर्वोक्त गायत्रीके जे अर्थ करे हैं, ते सर्व क्रीडामात्र हैं “कीडामात्रोपयोगमिदमितिवचनात् " इससे यह सिद्ध होता है कि, येह पूर्वोक्त सर्व अर्थ गायत्रीके सच्चे हैं, यह नही समझना. किंतु सत्यार्थ तो पो है कि, जिस ऋषिने जिस अर्थके अभिप्रायसें गायत्रीमंत्र रचा है; परंतु तिस ऋषिके कथन करे अर्थकी परंपरायसे धारणा आजतक चली आइ होवे, और तैसें ही अर्थ भाष्यकारोंने लिखे होवें, यह किसीतरे भी सिद्ध नही होता है, सो अग्रिम स्तंभसें जान लेना. इत्यलम् ॥ इतिश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादे जैनाचार्यबुद्धिवैभववर्णनो नामैकादशस्तंभ: ॥ ११ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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