________________
एकादशस्तम्भः ।
७
८
"
दादि पांच क्रमसें ) स्मरण करते हुए कल्पवृक्षकीतरें भक्तिमें तत्पर । पुरुषोंको क्या क्या मनवांच्छित पूर्ण नही करता है ? अपितु सर्व करता है. | कैसा है तत्वपंचक ? पापकी जातिका नाश करनेवाला । इति ॥ अथवा ॥ ' रेण्यं ' ' धीमहि ' इहां 'हि ' का 'हू' । ' रे' का 'र् ' ।" धी का दीर्घ 'ई' । और ' ण्यं ' का बिंदु | इन सर्व एकत्र जोडनेसें मायाबीज होता है । अर्थात् 'ह्रीं' कार होता है । सो भी अचिंत्य शक्तियुक्त है, सर्व मंत्रों में राजा समान होनेसें. यही । उद्गीथादिक ( सामवेदाबविशेष ) है 'महिधियोयोनः ' नकारसे परे जो विसर्ग है तिसको मकारसें परे जोडनेसें 'नमः' होनेसें । सन्मंत्र है । तदन्तः सन्मंत्रो वर्ण्यतेति । इत्यादि वचन प्रमाणसें । तथा । ' वरेण्यं ' वकारस्थित अकार और रगत ( रकारमें रहे ) एकारको - अ + ए ऐदौचसूत्रकरके 'ऐ' कारके हुए ' ण्यं '
कारमें स्थित बिंदुको ऐकारके साथ जोडनेसे वागूवीज “ऐं " सिद्ध होता है. । ' अधीमहि' अर्हत्पक्षके व्याख्यानमें 'इ: ' नाम कामका कथन करा है, इसवास्ते स्मरबीज श्रीबीजादि अक्षरोंके संयोग श्री पद्माad त्रिपुरादि देवताराधन महामंत्रसिद्धिके निबंधन होते हैं, इसप्रकारसें विद्वानोंको अपनी बुद्धिके अनुसार कहना योग्य है । स यौगिक येह अर्थ है, जेकर ऐसें कहोगे तो कौन कहता है ? कि, सयौगिक नही है. क्योंकि, सर्वही महामंत्र सयौगिक ही है.. तथाचाधीयते । " अमंत्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् । अधना पृथिवी नास्ति संयोगाः खलु दुर्लभाः ॥ १ " ॥ भावार्थ: ॥ विना मंत्रके कोइ अक्षर नही है, विना औषधिके कोइ जडी नही है, विना धनके कोइ पृथिवी नही है, परंतु निश्चय उनोंका संयोग दुर्लभ है. ॥ ऐसें रक्षावि यंत्र भी जैसें तीन मायावीज है । तिनके ऊपर यंत्रका न्यास करिये है, सो वशीकरणयंत्र है. । तथा तैसें वश्यादि प्रयोग भी इहां जानने । जैसें भर्गोशब्द गोरोचन । ' महि' मनःशिल | ' देव ' ' प्रचोदयात् ' दकारसें दल (पत्र) इनों करके । ' सवितुः ' विशब्दसें विशेषक विलेपन वा । 'यो' योशब्दसें विशेष योनिमती स्त्रीयोंको । 'नः ' नः शब्दसें पुरुषोंको प्रीति
૩૮
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org