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________________ एकादशस्तम्भः। आदिमेंही अस्खलित जगत्त्रयव्यापी तीनों देवोंके भी प्रणिधेय ऐसा ॐकार है, और जो वेद उद्गीय है, और जो वेद समस्त अर्थके प्रकाशनेमें एक सूर्यसमान है, तिस वेदके उपदेशको आश्रित्य होकरके कामसंपदा करणहार पंडितजनोंके पूजनीय ऐसे अग्निआराधनविषे, हमारी बुद्धियां प्रवृत्त होवें, ॥ इतिभट्टदर्शने मंत्रव्याख्या ॥७॥ - अथ सामान्यकरके सर्वप्रवादियोंके संवादिखरूप परमेश्वरका प्रणिधानरूप यह गायत्रीमंत्र है.॥ मंत्रः॥ __ॐ भूर्भवःस्वस्तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेव स्य धीमहिधियो योनः प्रचोदयात्॥१॥८॥ __ॐ भूर्भुवःस्वस्तत् सवितुः वरेण्यं भर्गोदेव स्य धीम् अहिधियः। योनः प्रचोदय अत् ॥ ८॥ व्याख्या (ॐ) पूर्ववत् (भूर्भुवःस्वस्तत्) हे सर्वव्यापिन् ! परमेश्वर ! वेदमें भी कहा है। 'पुरुषएवेदमिति'। (वरेण्यं) पूर्वोक्त अनुनासिकरीतिकरके हे वरेण्य — सवितुः' सूर्यसें भी प्रधान इति । (भर्गोदेव) 'भर्ग' ईश्वर 'उ' ब्रह्मा 'ऊ' शंकर तिनोंका भी देव ‘भर्गोदेव' हे भर्गोदेव ! अर्थात् हे विष्णु ! ब्रह्मामहादेवका आराध्य ! ऐसे नहीं कहना कि, तिनोंका आराध्य कोई नहीं है. । क्योंकि, वे भी संध्यादि करते हैं; ऐसा सुननेसें. । तथा । “ अष्टवर्गातगं बीजं कवर्गस्य च पूर्वकं । वहिनोपरि संयुक्तं गगनेन विभूषितम् । १। एतद्देवि परं तंत्रं योभिजानाति तत्वतः। संसारबंधनं छित्त्वा स गच्छेत् परमां गतिम् । २। इत्यादिवचन. प्रामाण्यात् ॥” (स्य) अंतय अंत कर । किसका सो कहे हैं, (धीम्) धीश्चित्तं धीनाम मनका है तस्या इः कामः तिस धी मनका जो इकाम सो कहिये 'धी' तं धीम्' अर्थात् मनोगत कामका। मनोगत कामके नष्ट हुए तत्त्वसें वचनकायाके कामका ध्वंस होही गया। तथा। (आहिधियः) क्रूरता आदि जे हैं, तिनोंका भी ध्वंस (विनाश) कर । तथा। (योनः) योनि सचित्तादि चौरासी (८४)लक्ष संख्याका विभाग जो करे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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