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है. हमारे ज्ञान पर्याय इस मुनीरानके सदुपदेश और आज्ञानुपार वर्तनसे किंचित् पहार आये हैं. इनके उपकाररूप ऋणको हम कीसी तरह भी अदा नहीं कर सकते हैं. इस प्रकारका मत उनके तमाम अनुयायीयोंका है. हां एक बात है की इन महात्माके नामसें प्रतिग्राम और प्रतिनगर जैन विद्याशाला स्थापन करी जावे और जिसमें सांसारिक विद्याके साथ धार्मिक विद्याका ज्ञान दिया जावे तो पूर्वेक्त महात्माके किये उपकारका यत्किचित् बदला उतर सकता है. एसे २ कइ उपकार यह महात्मा कर रहे थे. परंतु आः हा ! दैवकी गति न्यारी है, भारतवर्षभूषण, विद्यापारंगत, सुधारणास्थापक, धर्मविजयके आनंद, आत्मामें रमण करनहार, सुरि देवलोक प्राप्त हुए. वह भव्यमूर्ति, निडर घंटनादसम वाणी हृदय, पारंगत दृष्टि, वज्रसमान मर्मयुक्त खंडनकला, सदा सर्वथा मन वचन कर्मवाणीसें प्रकाशित केवल निःस्वार्थी धर्माभिमान यह एक क्षणमें भारतभूमिको दुर्भागि करनेको अदृश्य हो गये. मातृभूमिको भी दुष्काल महामारीरूप दुःखका वैधव्य स्वामिवियोगसे हुवा नहो!
पूज्यमहाराजजीने यह ग्रंथ अपनी अंत अवस्थाके थोडेही काल पहीले बनायाथा. अन्य मतके उपर उजाला डालनेवाली बहोतसी बाते इप्समें है. मेरेगर उनका पुरा अनुग्रह होनेसें यह ग्रंथ मुझको दिया गया था. प्रसिद्ध करनेको छपवाना सुरू किया. बाद महामारी, छापखानेकी अव्यवस्था, बाद छापखानेका बीकजाना, मेरेपर स्त्रीमरणादि आफतोंका आना, तस्वीरें मिलनेमें देरी, और जाहिर करने योग्य नहि ऐसें विनोंसें और कुच्छ प्रमादसें भी ग्रंथका प्रसिद्ध होना ढीलमें रहा. अब यह ग्रंथ वाचक के आगे रजुकर शका हूँ ; जिसका पुरा धन्यवाद मैं आचार्यजी महाराज श्रीकमलविनयजी और मुनिराज श्रीवल्लभविजयजी आदिको देताई कि उन्होंने औषधीरूप कदुलेख आदिसे मुझको जागृत करके प्रसिद्ध करवाया.
जिस जिस महाशयोंने इस ग्रंथको खास सहाय दी है, उनका पुरा धन्यवाद मानताहूं; उनकी सविस्तर हकीकत आगे आवेगी. *
आगेसें ग्राहक होकर पूरी मदद देनेवाले महाशयों के नाम भी आगे दाखिल किये हैं.
यह पुस्तक धर्मकार्यमें उपयोग करनेवालेको, पुस्तकालय भंडारमें भेट करनेवालेको, इनामके लिये लेनेवालेको, साधारण पाठकवर्ग वगैरे सबके सुभिताके लिये सहायदाताओंकी मददसे कम मूल्यमें दिया जायगा. योग्य मुनिराजोंको यह पुस्तक भेट भेजा जायगा. ___ इन ज्ञानी आचार्यका अद्भुत वंशवृक्ष रंगीन वृक्षके माफिक बनाकर इस पुस्तकमें प्रसिद्ध किया है. इस ग्रंथको तमाम तस्वीरें अमेरिका और इंग्लंडसे बहोत खर वा देकर खास कारीगरके हाथसें बनवाकर मंगाई हैं. कागज मोटे और सफाईदार पसंद किये हैं. अक्षर बडे हैं जो देखने और पढनेसें पाठकवर्ग खुश होंगे. ज्ञानका अनुमोदन करेंगे तो प्रसिद्ध काका परिश्रमका बदला मिला समझा जायगा.
* सहायदाता महाशयोंकी उमदा छबी और अल्प वृत्तांत उन महाशयोंकी इच्छा नही होते हुवे भी सहायताकै केवल उपकारार्थ छापे गये हैं.
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