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________________ २८२ तत्त्वनिर्णयप्रासाद थका सामान्यप्रकारें ज्ञानका सद्भाव होनेसें, क्षति नहीं है. । ( भर्गोदे ) 'भर्गः ' 'ईश्वर, 'उ:' ब्रह्मा, 'द: ' विष्णु [दयते - पालयति जगदिति दो विष्णुः ] लोकमेंही, रजोगुणाश्रितत्रह्मा जगत्को उत्पन्न करता है, सत्वगुणाश्रित विष्णु स्थापन करता है, और तमोगुणाश्रित ईश्वर संहार करता है. । भर्गश्च उश्च दश्चेति भर्गोदं द्वंद्वैकवद्भावात् तस्मिन् भर्गोदे अर्थात् ईश्वर ब्रह्मा विष्णुमध्ये | कैसें ईश्वरादि ( वसि ) वसतीति वस् तस्मिन् वसि, ( अधीमहि ) अस्यापत्यं इः कामः 'अ' विष्णु तिसका पुत्र 'इ' कामदेव तिसकी मह्यो भूमयः - भूमियां कामिन्यः - स्त्रीयां तिनको अंगीकार करके 'अधीमहि' स्त्रीयविषे तिष्ठमान अर्थात् स्त्रीयोंके वशीभूत जिनोंका आत्मा है. । ईश्वरब्रह्माविष्णुविषे स्त्रीयोंके परवशपणा यह तो प्रसिद्धही है. । पार्वतीके राजी रखनेवास्ते ईश्वर तांडवाडंबर करता है । ब्रह्माजीकेवास्ते वेद में भी कहा है । “प्रजापतिः स्वां दुहितरमकामयदिति" ब्रह्मा अपनी पुत्री के साथ भोग करनेकी इच्छा करता हुआ । और विष्णुका तो स्त्रीवशपणा गोप्यादिवल्लभपणेके उपदर्शक तिस २ वचनोंके श्रवण करनेसें प्रतीत होता है । पठ्यते च ॥ राधा पुनातु जगदच्युतदत्तदृष्टिर्मंथानकं विदधती दधिरिक्तभांडे । तस्याः स्तनस्तबकलोलविलोचनालिर्देवोपि दोहनधिया वृषभं निरं ॥ १ ॥ इत्यादि ॥ भावार्थ:- कामके वश होके कृष्णजी में स्थापन करी है दृष्टि जिसने, इसीवास्ते अर्थात् काम परवश होनेसें दधिविना खाली भांडेमें जो मंथानक धारण कर रही है, अर्थात् कामके वश हुई यह नही जानती है कि, मैं दा रिडकती हूं कि खाली भांडा; ऐसें विशेषणोंवाली राधा, ( लक्ष्मी ) जगत्को पवित्र करो । अपिच तस्याः - तिस राधाके स्तनसमूहऊपर चंचलनेत्रालि ( नेत्रपंक्ति ) स्थापन करी है जिसने, इसीवास्ते काम परवश होनेसें दोहनक्रियाकी बुद्धिकरके गौके बदले बैलको रोकता हुआ; ऐसे विशेषणोंवाला देव कृष्ण- विष्णु भी जगत्‌को पवित्र करो ॥१॥ इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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