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________________ २६२ तत्त्वनिर्णयप्रासादऋचायों प्रदान करी कि, जिनके पढनेसें अश्विनौने आकर तिसको पेटीसें बाहिर काढा! और तिस ऋषिने भतीजोंके भयसें रात्रिको छाना निकसके स्वभार्यासें संपूर्ण रात्रिमें विषय भोग करके सवेरेको फिर पेटीमें प्रवेश कर जाना.। वाह !!! बलिहारि है, ऐसे ऋषि महात्मायोंकी कि जिनकी अतिदुःष्कर तपस्यासें तुष्टमान होके पेटीमें बैठेको दो ऋचायों प्रदान करी, जिससे सप्तवधि निहाल हो गया! पाठकवर्गो! परमेश्वर विना ऐसा दयालु कौन होवे ? कोइ भी नहीं. इसवास्तेही तो पंडितलोक ऋग्वेद्रको प्रधान वेद कहते हैं कि, जिसमें ऐसा २ अत्यद्भुत ज्ञान भरा है!!! तथा ऋ० सं० अष्टक ६ अध्याय ६ वर्ग १४ में लिखा है ॥ अतीतकालमें अत्रिऋषिकी पुत्री अपालानामा ब्रह्मवादिनी किसीकारणसें त्वग्रोगसंयुक्त थी, इसवास्तेही पतिने तिसको दुर्भगा जानके त्याग दीनी थी; सा अपाला अपने पिताके आश्रममें त्वग्दोषके दूर करनेवास्ते चिरकालतक इंद्रको आश्रित्य होके तप करती हुई. सा कदाचित् इंद्रको सोमवल्ली प्रियकर है, इसवास्ते में सोमवल्लीको इंद्रकेतांई दूंगी, ऐसी बुद्धि करके नदीके कांठेउपर जाती हुई; तहां स्नान करके, और रस्तेमें मिली सोमवल्लीको लेके, अपने घरको आती हुई. रस्तमेंही तिस सोमको अपाला खाने लगी, तिसके भक्षणकालमें दांतोंके घसनेसें शब्द उत्पन्न हुआ, तिस शब्दको पत्थरोंसें पीसते हुए सोमके समान ध्वनि जानकर तिस अवसरमेंही इंद्र तहां आता हुआ. आयके, तिस अपालाको कहता हुआ कि, क्या इहां पत्थरोंसें सोमवल्ली पीसते हैं ? अपाला कहती है, अत्रिकी कन्या स्नानकेवास्ते आकर सोमवल्लीको देखके तिसका भक्षण करती है, तिसके भक्षण करनेकाही यह ध्वनि है; नतु पत्थरोंसें पीसते सोमका. तैसें कहाहुआ इंद्र, पीछे जाने लगा; जाते हुए इंद्रको अपाला कहती है, किसवास्ते तूं पीछे जाता है ? तूं तो सोमके पीनेवास्ते घरघरमें जाता है, तब तो इहां भी मेरी दाढोंकरके चावी हुई सोमवल्लीको तूं पी (पानकर) और धानादिको भक्षण कर. अपाला ऐसें इंद्रको अनादर करती हुई फिर कहती है, इहां आए तुझको मैं इंद्र नही जानती हूं; तूं मेरे घरमें आवे तो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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