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नवमस्तम्भः ।
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यं ) प्राप्तकालमें (ह) इति प्रसिद्ध ( गर्भं दधे ) उसने गर्भको धारण किया. कैसा है वह गर्भ कि ( यतो जातः प्रजापतिः ) जिसगर्भसें प्रजापति अर्थात् ब्रह्माजी उत्पन्न हुए. ॥ ६३ ॥
[समीक्षा] प्रथम तो यह श्रुति पूर्वोक्त यजुर्वेद, ऋग्वेद, गोपथादिकी श्रुतियोंसें विरुद्ध है. तथा परमात्माका सुंदर भुवन रहनेका स्थान कहा, यह विरुद्ध है. क्योंकि, सर्वव्यापी परमात्माका कोइ भी स्थान नही सिद्ध हो सक्ता है. और तिससमय में तो आकाश भी नही था तो, विना आकाशके परमात्माका सुंदर भुवन कहां था ? तथा अपनी इच्छासें जो शरीरको धारण कर शके सो कहावे स्वयंभू, यह विशेषण प्रमाणबाधित है. क्योंकि, शरीरके विना मन और मनके विना इच्छा नही हो सक्ती है, यह प्रमाण सिद्ध है. इसवास्ते पूर्वोक्त व्युत्पत्ति स्वकपोलकल्पित है ॥ परमात्मा महाजलसमूहमें ऋतुकालमें गर्भ धारण करता भया, तिस गर्भसें प्रजापति ब्रह्माजी उत्पन्न भए इत्यादि - यह ऋग्वेद यजुर्वेद गोपथादिसें विरुद्ध है. क्योंकि, तिनमें अन्यथा कथन है, सो लिख आए हैं. । तथा परमात्माने जलसमूहमें गर्भ धारण करा, इत्यादि कहना भी महामिथ्या है. क्योंकि, उस समय में तो न पृथिवी थी, और न आकाश था तो, जल किस वस्तुमें, और किस ऊपर ठहर रहा था ? फेर जब परमात्माको ऋतुकाल आया, तब जलके बीच में गर्भ धारण करा - क्या परमात्माको स्त्रीधर्म हुआ था ? और जलके बीच में गर्भ धारण करा, क्या गर्भ बहुत उष्ण था ? जिसकी गरमीसें जल न जाऊं इस भयसें जलमें प्रवेश करके गर्भ धारण करा और सर्वव्यापी सच्चिदानंद अरूपी सर्वशक्तिमान निराकार एक परमात्मा जलमें गर्भ धारण करे, यह परस्पर विरुद्ध, और युक्तिप्रमाण बाधित नही है ? तथा तिस समयमें तो काल भी नही था तो, फेर परमात्माको ऋतुकाल किसतरें प्राप्त हुआ ? जेकर कहोंगे, यह तो अलंकार है, तो, ऐसे भ्रमजनक मिथ्या अलंकारके कहने से क्या सिद्धि भई ? जेकर अलंकारही कथन करना था तब तो परमात्माको एक सुंदर यौवनवती स्त्री कथन करना था, और
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